शहीद - ए - आजम भगत सिंह -2

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    धरती माँ धिक्कार रही थी,
    रो रो कर चीत्कार रही थी .
    वीर पुत्र कब पैदा होंगे ?
    जंजीरों को कब तोड़ेंगे ?

    ’जन्मा राजा भरत यहीं क्या ?
    नाम उसी से मिला मुझे क्या ?
    धरा यही दधीच क्या बोलो ?
    प्राण त्यागना अस्थि दान को ?

    बोलो बोलो राम कहाँ है ?
    मेरा खोया मान कहाँ है ?
    इक सीता का हरण किया था,
    पूर्ण वंश को नष्ट किया था !

    बोलो बोलो कृष्ण कहाँ है ?
    उसका बोला वचन कहाँ है ?
    धर्म हानि जब भारत होगी,
    जीत सत्य की फिर फिर होगी !

    अर्जुन अब कब पैदा होगा,
    भीम गदा धर कब लौटेगा ?
    पुण्य भूमि बेहाल हुई क्या ?
    वीरों से कंगाल हुई क्या ?

    नृपति अशोक चंद्रगुप्त कहाँ ?
    मर्यादा भारत लुप्त कहाँ ?
    कहाँ है शान वैशाली की ?
    मिथिला, मगध, पाटलिपुत्र की ?

    गौतम हो गये बुद्ध महान,
    इस धरती पर लिया था ज्ञान .
    दिया कितने देशों को दान,
    संदेश दबा वह कहाँ महान ?

    इसी धरा पर राज किया था,
    विक्रमादित्य पर नाज किया था .
    जन्मा पृथ्वीराज यहीं क्या ?
    कर्मभूमि छ्त्रपति यही क्या ?

    चेतक पर घूमा करता था,
    हर पत्ता, बूटा डरता था .
    घास की रोटी वन में खाई,
    पराधीनता उसे न भाई .

    जुल्मों की तलवार काटने,
    भारत संस्कृति रक्षा करने .
    चौक चाँदनी शीश कटाया,
    सरे - आम संदेश सुनाया .

    चिड़ियों से था बाज लड़ाया,
    अजब गुरू गोबिंद की माया .
    धरा धन्य थी उसको पाकर,
    देश बचाया वंश लुटाकर .

    वही धरा अब पूछ रही थी,
    रो रो कर अब सूख रही थी .
    लौटा दो मेरा स्वाभिमान,
    धरती चाहती फिर बलिदान .

    पराधीन की कड़ियाँ तोड़ो,
    नदियों की धारा को मोड़ो .
    कोना कोना भारत जोड़ो,
    हाथ उठे जो ध्वंश, मरोड़ो .

    सिंह नाद सा गुंजन करने,
    तूफानों में कश्ती खेने .
    वह अमर वीर कब आयेगा ?
    मुझको आजाद करायेगा !

    हर बच्चा भारत बोल उठे,
    सीने में ज्वाला खौल उठे .
    हर दिल में आश जगाये जो,
    भूमि निछावर हो जाये जो !

    हर - हर बम बम जय घोष करो,
    अग्नि क्रांति की हर हृदय भरो .
    नर - नारी सब तरुण देख लें,
    करना आहुति प्राण सीख लें !

    बहुत हुआ अब मर मर जीना,
    अनुसाल दासता की सहना . (अनुसाल = पीड़ा)
    संभव वीर न भू पे लाना ?
    ताण्डव शिव को याद दिलाना !’

    कवि कुलवंत सिंह
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