शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 5

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    देश प्रेम का ज्वार भरा था,
    रोम रोम अंगार भरा था .
    मन में शोले भड़क रहे थे,
    स्वतंत्रता को तड़प रहे थे .

    प्रचण्ड शक्ति संचित कर भाल,
    सत्ता को चुनौती विकराल .
    पवन को भर कर अपनी श्वास,
    पावक उगलने का विश्वास .

    कड़क विहंसती विद्युत धारा,
    टूट पड़ा अंबर घन सारा .
    अंग अंग अभिमान तरंगें,
    लहराये नगर नगर तिरंगे .

    युग का गर्जन बन कर आया,
    सिंधु प्रलय वह भीषण लाया .
    राष्ट्र दर्प हुंकार लगाई,
    ललाट लालिमा लहू सजाई .

    काल कपाल कराल कामना,
    सत्ता सिमटे सिंह सामना .
    भीतर भभक भर भुजा भुजंग,
    धधकाई धरती धड़क धड़ंग .

    अंबर पर आग लगाने को,
    कंपित धरती कर जाने को,
    पीड़ा की आह मिटाने को,
    जब्ती को तोड़ जगाने को .

    झंझा झकझोर जमाने को,
    लहरों पर नाव चलाने को,
    तूफानों पर चढ़ जाने को,
    प्रचण्ड विरोध दिखलाने को .

    भीषण अंगार जलाने को,
    जंजीरों को पिघलाने को,
    वाणी देने मौन क्रोध को,
    अपमानों के गरल घूँट को . (गरल = विष)

    जुल्मों से लोहा लेने को,
    सत्ता गोरी मटियाने को,
    बन जुनून सर चढ़ जाने को,
    भारत भर में छा जाने को .

    देखो देखो वह आया है,
    क्रांति भगत सिंह ले आया है .
    सच्चा सपूत अब आया है,
    क्षितिज शौर्य फिर फहराया है .

    ध्वनित हुए फिर राग प्रभाती,
    जन जन में थी आशा जागी .
    सुप्त राष्ट्र में प्राण भर गये,
    इंकलाब के गीत बस गये .

    बन आँधी ललकार लगाई,
    अंग्रेजों की नींद उड़ाई .
    हर सपूत में ज्योत जलाई,
    भारत माँ को आश जगाई .

    बही हवा वो आँधी की जब,
    धधकी ज्वाला नगर नगर तब .
    चिनगारी बन तरुण हृदय हर,
    क्रांति ज्योति की फैली घर घर .

    मिली ज्योत से ज्योत अनेकों,
    आँधी बन गई तूफाँ देखो .
    गाँवों, नगरों, देहातों में,
    विजय पताका सब हाथों में .

    साइमन कमीशन जब आया,
    विरोध सभी ने था जताया .
    लाठी चार्ज जम कर कराई,
    लाला जी ने जान गवाई .

    ठान लिया था बदला लेना,
    अधीक्षक सांडर्स को उड़ाना .
    क्रांतिकारियों के संग मिलकर,
    मारा उसे गोली चलाकर .

    यौवन को अंगार बना कर,
    मुकुट अभिमान देश सजाकर,
    क्रांति में नई जान फूँक दी,
    अखिल राष्ट्र टंकार छोड़ दी .

    धुन के पक्के मतवाले जब,
    चलते हैं तो फिर रुकते कब ?
    पथ में काँटे, पग में छाले,
    विजय प्राप्ति तक चलने वाले .

    गठन ’नौजवान भारत सभा’,
    भर राष्ट्र प्राण आलोक प्रभा .
    नस नस में ज्वाला भभक रही,
    ले अभय जवानी धधक रही .

    विष जो सत्ता ने बोया था,
    सिंह जहर उगलने आया था .
    जो दारुण दर्द दबाया था,
    वह दर्द मिटाने आया था .

    बाँध कफन को निकला घर से,
    सत्ता सहम गई थी डर से .
    तैरा तूफाँ पर मरदाना,
    चला सुनामी पर दीवाना.

    कवि कुलवंत सिंह

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