हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की गोष्‍ठी : क्‍या आपको इसकी खबर थी


21 फरवरी 2010 को सांय 3 बजे हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की एक गोष्‍ठी का आयोजन साहित्‍यकार सदन, सन्‍त नगर, नई दिल्‍ली में किया गया। गोष्‍ठी में सर्वश्री/सतीश सक्‍सेना, शहरोज, सुरेश यादव, पवन चंदन, खुशदीप सहगल, कनिष्क कश्‍यप और अविनाश वाचस्‍पति उपस्थित रहे। गोष्‍ठी का आयोजन एकदम शार्ट नोटिस पर किया गया था। पहले यह आयोजन श्री राजीव तनेजा के आवास पर तय था परन्‍तु किन्‍हीं अ‍परिहार्य कारणों के चलते यह आयोजन अविनाश वाचस्‍पति के निवास पर किया गया। पूर्व निर्धारित व्‍यस्‍तता के कारण गोष्‍ठी में सर्वश्री/ डॉ. टी. एस. दराल, अजय कुमार झा, सुभाष नीरव, राजीव तनेजा,संजू तनेजा, नीरज बधवार, एम. वर्मा, प्रवीण शुक्‍ला प्रार्थी, चिराग जैन, सुमित प्रताप सिंह उपस्थित नहीं हो सके। पर इन सबने कहा कि इस गोष्‍ठी में हमारी उपस्थिति मान ली जाये और इस गोष्‍ठी में लिए गए सभी निर्णयों पर हमारी सहमति दर्ज कर ली जाये। इन सभी के विश्‍वास के हम कायल हैं।
गोष्‍ठी का आरंभ आपस में परिचय से हुआ। अपना अपना परिचय सबने खुद ही दिया बिल्‍कुल उसी प्रकार जिस प्रकार ब्‍लॉग पर अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता होती है। इन सबके परिचय के लिए अलग से कुछ नहीं लिखा जा रहा है, सबके नामों में ही उनके परिचय के लिंक जोड़ दिए गए हैं जिससे इनके चित्र के जरिए ब्‍लॉग पर भी जाया जा सकता है और इनकी रचनाओं और इनसे परिचित हुआ जा सकता है।

हिन्‍दी ब्‍लॉगरों का एक संगठन बनाने के संबंध में विचार किया गया और इसका नाम क्‍या रखा जाए, यह कार्य ब्‍लॉगजगत के पाठकों पर छोड़ा जाता है कि इस अंतरराष्‍ट्रीय संगठन का क्‍या नामकरण किया जाये और क्‍यों, संगठन का गठन किया भी जाये अथवा नहीं, और जो सुधी ब्‍लॉगजन इस संबंध में अपनी राय देना चाहें, उनका सहर्ष स्‍वागत है।

यह विचार लेकर चला गया था कि आर्थिक रूप से सक्षम ब्‍लॉगर प्रतिदिन दस रुपये के हिसाब से अंशदान जोड़ेंगे जिससे हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के हित संधान के लिए सम्‍मेलन, गोष्ठियों इत्‍यादि पर व्‍यय किया जा सके और हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की बेहतरी के लिए किए जा रहे कार्यों में धन की बाधा न हो। इस पर काफी गहन विचार विमर्श के उपरान्‍त सतीश सक्‍सेना जी की सलाह के अनुसार यह तय किया गया कि भविष्‍य में आयोजित किए जाने वाले हिन्‍दी ब्‍लॉगर सम्‍मेलन/गोष्‍ठी इत्‍यादि में आने वाले व्‍यय का भार किसी भी एक ब्‍लॉगर पर आये, इस स्थिति से बचा जाना चाहिए और इन खर्चों के लिए स्‍वैच्छिक आर्थिक अंशदान एकत्र किया जाना चाहिए जो कि आयोजनबेस हो और आयोजन संपन्‍न होने के साथ ही खर्च का हिसाब भी संपन्‍न हो जाना चाहिए। तभी इस प्रकार के आयोजन लंबे समय तक अनवरत रूप से चल पायेंगे।
शहरोज़ भाई ने मुखालफ़त और खिलाफ़त, जलील और ज़लील, खुदाई जैसे शब्दों के अर्थ और फर्क बड़ी अच्छी तरह समझाए...अब जैसी खुशदीप सहगल की पहचान है स्लॉग ओवर तो उन्होंने एक गुगली से सबको हंसाते हंसाते लोट-पोट कर दिया...इसके बाद एक बड़ा अच्छा सुझाव आया कि ब्लॉगिंग को समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाने के लिए कुछ करना चाहिए...खुशदीप सहगल के इस सुझाव को सतीश सक्सेना जी ने बहुत पसंद किया और इसी काम के लिए अपने ट्रस्ट की भी जानकारी दी...एक सुझाव ये भी आया कि ब्ल़ॉगर बंधुओं को अपने आस-पास के घरों में रहने वाले बुज़ुर्गों के लिए ज़रूर कुछ करना चाहिए...उनके लिए प्यार के दो मीठे बोल ही बहुत होते हैं...सुरेश यादव जी और पवन चंदन जी ने अपनी कुछ कविताओं से भी समां बांध दिया...

संगठन बनने पर अविनाश वाचस्‍पति का सुझाव है कि संगठन में प्रत्‍येक सदस्‍य के लिए वार्षिक 100/- रुपये रखे जा सकते हैं और विद्यार्थी ब्‍लॉगर जो यह भी वहन न कर पायें उन्‍हें इससे भी छूट दी जानी चाहिए।
इन दोनों ही विचारों पर सबकी सहमति रही।

भाई खुशदीप सहगल जी से अनुरोध है कि गोष्‍ठी में सुनाए गए स्‍लाग ओवर को बतौर टिप्‍पणी अवश्‍य दर्ज करें ताकि अन्‍य पाठक भी उसका भरपूर आनंद ले सकें। इसी प्रकार पवन चंदन जी अपनी सुनाई गई काव्‍य पंक्तियां और सुरेश यादव जी अपनी कविता बतौर टिप्‍पणी दर्ज करने का कष्‍ट करें।

यह पोस्‍ट लगने तक ताजा अपडेट यह है कि ब्‍लॉगरों का होली मिलन समारोह संभवत: 13 या 20 मार्च 2010 को होगा। जिससे अधिक से अधिक और दूर देश के ब्‍लॉगर भी इसमें शिरकत कर सकेंगे। यह भी स्‍थान की उपलब्‍धता पर है। पर अभी किसी तिथि को निश्चित मानकर मत चलियेगा।

लगभग ढाई से तीन घंटे तक चली इस गोष्‍ठी में और भी अनेक विषयों पर विचार विमर्श किया गया। जिन्‍हें कि उपस्थित ब्‍लॉगर इसमें टिप्‍पणी रूप में दर्ज कर सकते हैं। गोष्‍ठी में सभी ब्‍लॉगर इतने तन्‍मय हो गए कि खुशदीप सहगल अपना मोबाइल फोन गोष्‍ठी स्‍थल पर ही भूल गए और उन्‍हें तब उसके न होने का भान हुआ जब उन्‍होंने अपने घर में प्रवेश करने से पहले अपनी जेब में हाथ डाले तो मोबाइल को नदारद पाया। खैर ... इससे पहले ही कनिष्‍क कश्‍यप उनका मोबाइल लेकर उनकी तलाश में निकल चुके थे और कनिष्‍क ने खुशदीप को उनके घर पर पहुंचकर मोबाइल थमाया। शायद खुशदीप सहगल के आसपास वो मोबाइल किसी चित्र में नजर भी आ रहा हो।

आप बतलाते जाइये कौन से चित्र में कौन हैं ?

36 टिप्‍पणियां:

  1. पता होता तो बिन बुलाए ही पहुंच जाता.....चलिए आप लोग तो थे ही....मैं हर सुझाव पर सहमत हूं....संगठन भी ज़रूरी है....अंशदान देने को तत्पर हूं...10 रुपए वाला सुझाव भी अच्छा है....बस ज़्यादा अच्छा अच्छा न बुलवाइए अब....होली पर मिलना पक्का रहा

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  2. हमें तो खबर नहीं मिली और हम नाराज है कि हमें नहीं बताया गया
    ये बहुत ही अच्छा निर्णय है भविष्य में होने वाले ब्लोगर मिलनों के व्यय के
    लिये एक फ़न्ड बनाया जाये ताकि अर्थिक भार सब मिल कर वहन करें

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  3. चाचा जी..रिपोर्ट पढ़कर बढ़िया लगा पर ऐसी क्या नाराज़गी रविवार का दिन था कुछ खबर हमें भी दिए होते तो हम भी आ जाते इसी बहाने आप लोगों से भी मिल लेते..चलिए ठीक है पर अगली गोष्ठी में मत भूल जाइएएगा हमें बताना...हम ज़रूर आएँगे....

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  4. ये भी खूब रही गुप्त गोष्ठी भी होने लग गयी जी अब!

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  5. आप लोग जबर्दस्त काम कर रहे हैं।
    अविनाशजी की लगन काबिलेतारीफ है।

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  6. श्लॉग ओवर आने तक मेरी टिप्पणी लँबित रहेगी !
    सारा ऎज़ेन्डा तो आपने खोल कर रख दिया, अब इसमें गुप्त क्या रहा जी ? यह तो इक़बाल-ए-मीट है !

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  7. बहुत सुंदर,हमारा नाम भी लिखा जाये जी ,बात ठीक है किसी एक पर बोझ नही पडना चाहिये..

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  8. दिल्ली में होली
    ब्लागर की झोली में.
    बैठक की सफलता
    और आगामी योजना
    होली पर रंग-बिरंगी
    shubh कामना.
    शरद आलोक

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  9. अविनाश भाई,
    वही हुआ जिसका डर था...आपने तो सिर्फ ये सुझाव ही मांगा था कि संगठन बनाया भी जाए या नहीं कि विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं...बाकायदा पोस्ट लिखी जाने लगी हैं कि ब्लॉगर को ब्लॉगर ही रहने दिया जाए...किसी समूह या मंडली के दायरे में न बांधा जाए...विरोध वाली पोस्ट पढ़कर भाई सतीश सक्सेना जी की ओर से गोष्ठी में जताया गया ख़तरा खुद-ब-खुद सामने आ गया...इसलिए बेहतर यही होगा कि गोष्ठी में जो बिंदु उभरे थे मसलन बुज़ुर्गों की सेवा, ट्यूशन फीस देने में असमर्थ बच्चों की पढ़ाई में मदद, ज़रूरतमंदों की सतीश जी के ट्रस्ट से सहायता, नौजवान ब्लॉगरों को प्रोत्साहन, शहर-शहर जाकर हिंदी और ब्लॉगिंग के लिए जागरूकता लाना, प्रिंट मीडिया से संपर्क, ब्लॉगरों की तकनीकी सहायता, ब्लॉगर को डॉट कॉम बनवाने में मदद, ब्लॉग्स पर भारतीय कंपनियों से सीधे एड लाने की कोशिश, कविता और साहित्य के लिए विशेष ब्लॉग बनाना आदि-आदि इन पर संगठन की बजाए एक जैसी विचारधारा वाले लोग मिल कर काम करें...क्योंकि अगर कोई दस रुपये जितनी छोटी रकम भी देगा तो वो टांग-खिंचाई या विघ्न-संतोष को जन्मसिद्ध अधिकार मानने लगेगा...मैं जानता हूं कि अविनाश जी आपका ब्लॉगिंग के प्रति समर्पण निस्वार्थ और सौ प्रतिशत है...इसलिए आपके सिर्फ एक फोन पर ही मैं बैठक में दौड़ा चला आया...बिना ये जाने कि एजेंडा क्या है...लेकिन मैं जहां विश्वास करता हूं वहां कभी सवाल नहीं करता...बैठक में जाकर ही उद्देश्य का पता चला...अविनाश जी बेहतर यही है कि जो भी पहल आप करना चाहते हैं, उसे संगठन का रूप न देकर परदे के पीछे से दोस्तों के समन्वित प्रयास के ज़रिए ही मूर्त रूप दे, वही श्रेयस्कर रहेगा...वरना यहां तो लेग-पुलिंग का ऐसा क्रेज है कि भला काम करने वाले को भी ऐसी टंगड़ी मारी जाती है कि वो सीधा खड़ा होने के लिए भी सौ बार सोचे...

    और हां एक बात और वो स्लॉग ओवर अपनों के बीच ही बस सुनाने की चीज़ था, ब्ल़ॉग जैसे सार्वजनिक मंच पर लिखने की नहीं...

    जय हिंद...

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  10. ब्लागर के नाम पर किसी संगठन का निर्माण-no sir no... http://gap-shapkakona.blogspot.com/2010/02/no-sir-no.html
    उपर दी गई पोस्‍ट पढ़ें और उसके नीचे दिए गए लिंक पर दी गई मेरी टिप्‍पणी पर भी विचार करें। फैसला आपके पास है। अंतिम निर्णय आपका ही होगा, आश्‍वस्‍त रहें -
    ''हिन्‍दी ब्‍लॉगरों का एक संगठन बनाने के संबंध में विचार किया गया और इसका नाम क्‍या रखा जाए, यह कार्य ब्‍लॉगजगत के पाठकों पर छोड़ा जाता है कि इस अंतरराष्‍ट्रीय संगठन का क्‍या नामकरण किया जाये और क्‍यों, संगठन का गठन किया भी जाये अथवा नहीं, और जो सुधी ब्‍लॉगजन इस संबंध में अपनी राय देना चाहें, उनका सहर्ष स्‍वागत है।''

    किसी का भी खफा होने का कोई कारण समझ में नहीं आता है। उपर दी गई पंक्तियों को दोबारा तिबारा पढ़ जाइये। ब्‍लॉगर बंधुओं/बांध्वियों कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि निर्णय हो गया है। आप सबसे विचार मांगे गए हैं, मंथन करने के लिए कहा गया है। पर अगर यह महसूस हो रहा है कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है तो पूरी दाल ही फेंकना ही बुद्धिमानी नहीं है। पर अगर लोग दाल फेंकने पर ही आमादा हैं तो सतर्कता के इस उपाय का भी स्‍वागत किया जाना चाहिए।

    पंडितजी आपको पूरा मान देते हुए निवेदन है कि जिसे आप मूर्खता बतला रहे हैं, वही जीवन की एक सशक्‍त धारा है यदि संगठित होकर न रहा जाए तो परिवार भी नहीं चल सकते हैं। पर अगर आप इसे मूर्खता मान रहे हैं तो आपकी बात तो माननी ही होगी। आपसे मेरा इतना नेह है कि आपकी बात तो मैं काट ही नहीं सकता हूं।

    वैसे हमें सदा यही नजरिया लेकर चलना चाहिये कि सभी की अच्‍छी अच्‍छी बातों को लेना चाहिये और फिजूल बातों को त्‍याग देना चाहिए परन्‍तु बेसुने, बेसमझे यदि अच्‍छी बातों को भी छोड़ा जाएगा तो किस प्रकार समाज का भला हो सकता है।

    एकदम आपा खो देना - किसी की भी क्षेत्र के लिए कभी उपयुक्‍त नहीं होता है। एक परिवार में भी जब बिना सामने वाले की बात जाने, समझे या सुने प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की जाती है तो उसके दुर्घटनाकारी नतीजे सामने आते हैं।

    विश्‍वास है प्रबुद्ध ब्‍लॉगरजन संयमित होकर इस पर पुन: विचार करेंगे और यदि यह पाया जायेगा कि संगठनात्‍मक और मिलनात्‍मक गतिविधियों पर रोक लग जानी चाहिए तो इस पर अमल किया जा सकता है। पर जो भी सोचा विचारा जाये धीरज धरकर ही, धैर्य खोकर नहीं।

    पढ़ समझ कर ही,न कि ब्‍लॉगिंग की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के नाम पर यूं ही राजनीति करने, टिप्‍पणियां पाने और विवाद रूपी मवाद को सड़गलाने और उस आकांक्षा का लाभ पाने की चाहत गरज बनकर उभरे। ऐसी गर्जना से न तो समाज का, न जीवन का और न ही ब्‍लॉगिंग का कोई हित होने वाला है, बस थोड़ा सा नाम अवश्‍य आपका हो सकता है।

    शब्‍द ही ब्रह्म हैं, उनकी ताकत को पहचाना जाना चाहिए। शब्‍दों के सकारात्‍मक प्रयोग ही किए जाने चाहिए, न कि इन शब्‍दों के दुरुपयोग के द्वारा नकारात्‍मकता का प्रचार प्रसार किया जाये।

    फिर भी मेरी इस राय से अगर इत्‍तेफाक न हो तो इसे हटाया भी जा सकता है और आजादी का भरपूर लुत्‍फ उठाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए।

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  11. यह तो बहुत अच्छी बात है कि ब्लॉग के प्रचार के लिए आपलोग इतने समर्पित हैं...और नए नए तरीके सोच रहें हैं कि कैसे इसे और प्रोत्साहन मिले और ज्यादा से ज्यादा लोग इस से जुड़ें.ब्लॉग के माध्यम से हिंदी प्रचार के इस सुअवसर का जितना लाभ उठाया जा सके बेहतर है.इतने लोग जब एक उद्देश्य से जुड़ें तो कुछ समाज सेवा के कार्य भी हो जाएँ,जैसा खुशदीप भाई ने सुझाया है...तो सोने पे सुहागा है.

    किसी भी ब्लॉगर मीट पर होने वाला खर्च सबको मिलकर वहन करना चाहिए.यह बात मैंने मुंबई ब्लॉगर मीट के समय ही 'विवेक रस्तोगी' जी से कही थी और उन्होंने कहा था कि अगली ब्लॉगर मीट में ऐसा ही होगा.

    आपलोग अत्यंत सराहनीय कार्य कर रहें हैं...शुभकामनाएं

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  12. पहले यहां आया था इस बार दोबारा केवल दस्‍तक देने आया हूं। गूगल में ग्रुप वीडियो चैट शुरू होंगे तो गोष्ठियां ऑनलाइन भी संभव हो सकेगी।

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  13. अविनाश जी
    आयुष्मान भवः
    भाई रे मने कोनी बेरा यूं दादी तो समुंद्र पार बैठी
    मिया तो नू ही आप भेझो ओढ़े ने समाचार पत्र पढ लूं
    ईब ने तो होली में कोनी आंदी अगली फेर में अस्सिर्बाद तोरे ने देन आवूंगी

    आशीर्वाद के साथ तोरी गुड्डो दादी चिकागो से

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  14. बहुत ही सुंदर प्रयास और मेरे ख्याल से 100 प्रतिवर्ष की सदस्यता किसी को भी भारी नहीं पड़ेगी पर अगर कोई ब्लागर इससे भी अधिक देना चाहे तो उसका स्वागत है और हाँ अगर कोई पूँजीपति आदि भी कुछ देना चाहे तो उसका भी स्वागत होना चाहिए.....इस सुंदर विचार के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।।।।

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  15. बहुत अच्छा लगा मिलने-मिलाने की बात जानके| हमें पता लग जाता तो भले ही आकर चुप बैठे रहते लेकिन सुन लेते| अंशदान सुझाव से सहमत हूँ|

    शुभकामनायें

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  16. किसी भी ब्लॉगर मीट पर होने वाला खर्च सबको मिलकर वहन करना चाहिए
    एकदम सहमत..

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  17. ये तो बहुत बडिया प्रयास है। और ये संगठन होना भी चाहिये। हमारे खुशदीप भाई बहुत भावुक हैं इन्हें लोगों की बातें बहुत जल्दी प्रभावित कर देती हैं ।जो अच्छा काम करना चाहता है लोग उसे पीछे खीँचते ही हैं मैने आज तक ये महसूस किया है कि साथ देने वाले कम टाँग खीँचने वाले अधिक होते हैं मगर आप लगे रहिये खुशदीप जी साथ ही रहेंग।
    मगर आप तो कह रहे थे कि 6-7 को मीट रखेंगे? चलो कोई बात नही मैं तो शायद 6-7 को आ कर वली जाऊँ फिर देखा जायेगा। धन्यवाद और शुभकामनायें

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  18. क्‍यूं ललचाए जा रहे हैं आपलोग .. मई में कोई कार्यक्रम बनाया जाए .. तो मैं भी शामिल हो सकूं !!

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  19. आपके प्रयास प्रसंशनीय हैं ... यद्यपि किसी धनात्मक कार्य में विरोध या असहमति का होना तो इतिहास रहा है ... और होना भी चाहिए इस मंथन से कम से कम जो निकल कर आएगा अपने आप में शुद्ध और बेहतर ही होगा
    वैसे संगठन के बनने से राजनीति गुट बाज़ी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है .. फिर संगठन में वर्चस्व की बात शुरू होते ही और मुश्किल होगी...
    हाँ कोई अपना संगठन बना सकता है ... जिसे इच्छा हो शामिल हो जिसे इच्छा हो न शामिल हो ...
    रही बात ब्लोगर मीट्स की .. तो इसका खर्च किसी एक पर थोपना कहीं से उचित नहीं लगता. ब्लोगर मीट के लिए अंशदान उचित ही है ...
    फंड की बात एकदम ठीक है १०० रूपये वार्षिक के लिए किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये(वैसे ये बहुत कम लग रहा है)
    तमाम संभावनाओं के बावजूद अधिकतर लोग आपके प्रस्ताव से सहमत होंगे ऐसी आशा है ...
    मै तैयार हूँ हर प्रकार के यथायोग्य सहयोग से
    ....धन्यवाद

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  20. इस बात पर तो सभी सहमत होंगे कि एक अकेले पर किसी तरह का बोझ नहीं पड़ना चाहिये चाहे वह कितना भी सक्षम हो। आर्थिक पक्ष के अलावा और बहुत तरह की जटिलताएं सर उठाने लगती हैं।

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  21. avinash ji main aapki baat se sehmat hu, ye acha nirnay hai ki ek sangthan k rup me blogger bhaiyon ko joda jaye,

    waise aapke is aayojan ki hame bhi khabar nahi thi. ye baat galat hai.

    avinash ji mera bhi ek sujhav hai ki sabse pehle to sabhi blogger bhaiyon ki aap ek dairy bana le, jisme sabhi blogger k phon or mobile no, darj ho. isse sabhi ko is prakaar k aayojan ki khabar dene me aasani hogi, agar sabhi k phon sambhav nahi hai to aap sabke mail id to juta hi sakte hain, mera mail id aapke paas hai or mera phon no. 9999670566 or 9650700064 hai. aasha hai ki iss prakaar k aayojan ki jaankari hame bhi mil paayegi

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  22. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है....एकता में ही बल है...संगठन ज़रूर बनना चाहिए...
    इस बार तो अपरिहार्य कारणों की वजह से मैं आप सब को अपने घर पर आमंत्रित नहीं कर पाया जिसका मुझे सख्त अफ़सोस है लेकिन अगली मीटिंग मेरे ही यहाँ होगी...अभी से बोल देता हूँ

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  23. When we attended the first ever blog meet in the history of Hindi Blogging known as ''THE GREAT HIMALAYAN BLOGGERS' MEET AT SONAPANI'' , things were better.....

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  24. अब हम क्या कहें आप सब दिग्गज अनुभवी ब्लोगर हैं जैसा ठीक समझें।
    व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि जैसे ही कोई संगठन या एसोसिएशन बनती है तो उसके सदस्य भी होते हैं और कुछ ऐसे भी जो उसके सद्स्य नहीं बन पाते तो अपने आप पूरी बस्ती दो भागों में बंट जाती है अपना घरवाले और बाहरवाले। कुछ बिचारे चौखट पे बैठे रह जाते है। दरवाजे न खड़े करें तो सभी एक साथ मिल बैठेगें और खूब महफ़िल जमेगी

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  25. ये बढ़िया रहा चोरी-चोरी मिलन ।

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  26. हम सभी सहमत होंगे कि ब्लॉग एक मंच है और आज मिडिया की जैसी हालत है , उसके मद्देनज़र वैकैल्पिक मंच बेहद ज़रूरी हो गया है.और हमें इसका बसद शौक़ इस्तेमाल करना चाहिए. रही बात संगठन की तो यह इसलिए कि कभी किसी तरह की परेशानी आये तो हम सभी साथ होंगे.अंगुलियाँ गर अलग -अलग हों और फिर मुठी बाँध लें.तो ज़ाहिर है ताक़त बढ़ जाती है. और इस ताक़त से हम बहुत कुछ कर सकते हैं जैसा विचार भी किया गया या जैसा भाई खुशदीप ने कहा है:


    बुज़ुर्गों की सेवा, ट्यूशन फीस देने में असमर्थ बच्चों की पढ़ाई में मदद, ज़रूरतमंदों की सतीश जी के ट्रस्ट से सहायता, नौजवान ब्लॉगरों को प्रोत्साहन, शहर-शहर जाकर हिंदी और ब्लॉगिंग के लिए जागरूकता लाना, प्रिंट मीडिया से संपर्क, ब्लॉगरों की तकनीकी सहायता, ब्लॉगर को डॉट कॉम बनवाने में मदद, ब्लॉग्स पर भारतीय कंपनियों से सीधे एड लाने की कोशिश, कविता और साहित्य के लिए विशेष ब्लॉग बनाना आदि-आदि

    काम किये जा सकते हैं.



    जब इमरजेंसी का दौर था और धीरे-धीरे सारी पत्रिकाएं बंद हो रहीं थीं तो लघु-पत्रिका आन्दोलन ने कमान संभाली.जब इसका भी विरोध हुआ.लेकिन आज जितने भी लेखक हैं कमोबेश सभी उसी आन्दोलन की देन हैं.मुझे लगता है हम ब्लोगरों में भी एक से एक लोग हैं.सभी अपने स्टार पर बेहतर योगदान दे रहे हैं.
    और ये ज़रूर वैकैल्पिक मंच बन जाएगा.

    हम संगठन के साथ हैं..अगर बना तो..
    हाँ इसे निरपेक्ष होंकर काम करना होगा.

    रही बात टांग खींचने की तो यह हमारी परम्परा में शामिल है.लेकिन हमें इन से घबराना नहीं है ऐसी चीज़ें मुझे तो ऊर्जा ही देती हैं.

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  27. भाई अविनाश जी, आपकी सक्रियता देखकर दंग रह जाता हूँ कभी कभी। आप लोगों को जैसे तैसे जोड़ लेते हैं, अच्छे कामों को करने के लिए आप जैसा उत्साही और लगन रखने वाला व्यक्ति आज कहां मिलता है। मैं इस बैठक में अवश्य आता पर अपनी अस्वस्थता के चलते नहीं आ पाया। लेकिन आप जो करेंगे, मेरी उसमें सहमति होगी।

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  28. आपका सहयोग करते रहेंगे...

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  29. अविनाश जी , आप के विचारों का हार्दिक स्वागत है ... मेरा दिल हाँ ओर ना के बीच में अटका है . पर ये तो है की जो होगा उस से हिन्दी का भला ही होगा. कुछ ग़लत कुछ सही तो चलता ही है. हिन्दी दिवस मनाने के बदले हम ब्लॉगर दिवस शूरू करते है.

    में उस दिन आना तो चाहता था पर, ब्लॉगर सेवा के बदले जनसेवा में ही फस गया.

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  30. हालाँकि मैं इस विषय के पक्ष विपक्ष में नहीं रहा मगर जिस तरह उंगलियाँ उठाई जा रही हैं ऐसा लग रहा है जैसे अविनाश ने कोई संगठन की बात कर महा अपराध कर दिया है यह आश्चर्यजनक है ! जहां तक मैं समझ पाया अविनाश का आशय ब्लागरों को कुछ सुविधाएँ देने के लिए संगठन बनाने का था जैसे बाहर से आये साथियों के लिए रुकने का प्रवंध, और नए शहर में उनके लिए मदद करना शामिल था ! किसी अन्य और यहाँ तक कि अनजान साथी की के लिए ऐसा करने के लिए बहुत साहस और मानवता चाहिए हाँ उसका दुरुपयोग नहीं हो पाए इसके लिए पर्याप्त सतर्कता बरती जाना चाहिए !
    किसी भी संगठन को चलने के लिए भीड़ कभी नेतृत्व नहीं देती भीड़ को नेतृत्व देने के लिए एक या दो ईमानदार पथ प्रदर्शक ही चाहिए, अगर अविनाश कोई अच्छा कार्य करना चाहते हैं तो उन्हें किसी से राय लेने की आवश्यकता ही नहीं है संगठन बनते ही लोग अपने आप जुड़ते चले जायेंगे हाँ "दिल साफ़ होना चाहिए ..."

    इस गोष्ठी में शामिल होकर बहुत अच्छे लोगों से मिलवाने के लिए अविनाश वाचस्पति को हार्दिक धन्यवाद !

    खुशदीप जी के साथ कुछ देर बैठकर लगता है जैसे सत्संग हो गया हो !

    संगठन कभी बुरा नहीं होता चाहे किसी नाम से हो, उद्देश्य स्वहित न होकर "जनहित" होना चाहिए !

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  31. अविनाश जी जितना आपको जान सका हूँ .....और अपने छोटे अनुभवों के आधार पर कह सकता हूँ या अपनी राय टीप सकता हूँ .....वह यह संगठन बनाने से बहुत कुछ नहीं होने वाला !
    समाज का दूसरा आइना ही ब्लॉग भी है सो उससे अलग या जुदा कुछ होने से रहा ! आगे की खिच-खिच से कहीं आप अपनी सकारात्मकता ना खो बैठे ! बहरहाल जो अपनी मासिकता से मदद करने वाले हाथ हैं वह हमेशा मदद करते रहेंगे |
    शरू से मेरी जित्ती भी राय आपको इस मसले पर या गाहे -बगाहे मिली होगी ......वह इसके विपरीत ही रही है | बावजूद इसके कि आप पर हमें पूरा भरोसा है ! अनुमान कर रहा हूँ आप मेरा मंतव्य समझ रहे होंगे !

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  32. BLOG-JUNCTION naam mere dimagh mayn raha hai.Aap logon ki achchi pahal hai. par main dekh raha hoon ki blogs kshtriya akhbaron ki tarah istemal kiye ja rahe hai,ye sahi nahi hai.log chori karke blog-matter akhbar mayn chhapvalete hain. abhi ek national akhbar mayn galib par ek ne aisa hi kiya.ye jurm hai. aisa naheen hona chahiye.starieyta banay rakhen to uddeshy poora hoga aur mujh jaise log bhi jud jaayenge. prayas ke liye shubhkamnaayen.---ranjan zaidi>alpsankhyaktimes2.blogspot.com

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