यज्ञ शर्मा श्री से व्‍यंग्‍यश्री यज्ञ शर्मा हो गये : जानिये कैसे ? (अविनाश वाचस्‍पति)

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    प्रेम जनमेजय जी ने भेजा है खास

    सरकार का घड़ा
    यज्ञ शर्मा जी की
    पहली व्‍यंग्‍य पुस्‍तक है
    और पहली ही रहेगी
    पहेली भी नहीं रहेगी
    वो भी हल कर दी गई।

    व्‍यंग्‍यश्री पाने के लिए
    पुस्‍तक का होना जरूरी है
    पुस्‍तक सोना हो
    यह भी जरूरी होना चाहिये
    पर यह पुस्‍तक तो
    सोने से भरा सरकार का घड़ा है
    जिसे प्रभात प्रकाशन ने
    पाठकों और यज्ञ शर्मा जी
    के लिए
    भरा है।

    सरकार के घड़े में
    जरूर सोना ही होगा
    पर अगर कोई जाग गया
    तो क्‍या उसे व्‍यंग्‍यश्री
    नहीं मिलेगी
    यह जिज्ञासा मेरी कायम रहेगी।

    इस सवाल का जवाब
    न जाने कब मिलेगा
    मिलेगा भी या नहीं
    कोई देगा, नहीं देगा ?

    सम्‍मान हो गया संपन्‍न
    व्‍यंग्‍यश्री को पद्मश्री से
    महान बतलाया गया।

    भरा या नहीं
    पर लोकार्पण हो गया
    घड़े का
    सरकार का ?
    यह भी स्‍पष्‍ट हो गया

    कितना ही कर लें प्रयास
    सरकार के घड़े के भरने के
    तो पहुंच भी नहीं सकते आसपास।

    यह भी मालूम हुआ
    यज्ञ शर्मा जी ने भी माना
    कि उनका जन्‍म मथुरा में हुआ
    वहां की निच्‍छल हंसी
    अब भी उनके मुख को चूमती है
    एक बात मेरे मानस में घूमती है।

    मथुरा के हैं तो
    पेड़े खूब खाए होंगे
    फिर भी व्‍यंग्‍य लिख दिए तीखे
    मीठा खाकर भी व्‍यंग्‍य लिखना
    यज्ञ शर्मा जी से सीखें
    जिससे समाज की बुराईयां
    खूब जोर जोर से चीखें।

    श्री विश्‍वनाथ सचदेव, पूर्व संपादक
    हिन्‍दी दैनिक नवभारत टाइम्‍स ने भी
    अच्‍छी और सच्‍ची-सच्‍ची बातें कहीं
    व्‍यंग्‍य विधा मान ली गई।


    विचारों की व्‍यंग्‍य-विनोद सरिता
    श्री कन्‍हैयालाल नंदन जी की भी बही
    श्री गोपाल चतुर्वेदी जी कम ही बोले
    जो बोले उसमें व्‍यंग्‍य के कम
    विनोद के अधिक छोड़े गोले।

    यज्ञ शर्मा की खाली पीली का रंग
    नंदन जी पर चढ़ गया
    और उनके जरिए
    पूरी महफिल में भर गया।


    श्री प्रेम जनमेजय जी ने तो
    संचालन किया ऐसा
    लग रहा था लिख रहे हों
    प्रत्‍येक वाक्‍य में व्‍यंग्‍य जैसा।


    एक दुख यह भी सामने आया
    अब से पहले व्‍यंग्‍यश्री पाने वालों ने
    अपनी किस्‍मत पर होने वाले व्‍यंग्‍य का
    रोचक किस्‍सा सुनाया
    अब तो खूब माल मिलता है
    पहले सिर्फ शाल मिलता था
    अब प्रतीक चिन्‍ह, प्रशस्ति पत्र
    पैसे नकद (घड़ा भरकर,
    क्‍योंकि यह घड़ा सरकार का नहीं है)
    और भी न जाने क्‍या क्‍या
    पर यह न जाने क्‍यों नहीं कहा
    या तो स्‍मरण ही नहीं रहा
    पहले चित्र भी कम ही खिंचते थे
    अब मोबाइल से भी खींच लिए जाते हैं
    वीडियो भी बनाई जाती है
    पहले ऐसा नहीं होता था
    ऐसा ही दुख का सोता था
    यही दुख का सोता
    व्‍यंग्‍य से अधिक हास्‍य को जगाता है
    मेरा मानना है
    व्‍यंग्‍यश्री फिर से या पहले के
    संलग्‍नक बतौर पूर्वधारकों को
    देकर प्रतिपूर्ति की जानी चाहिये।

    कार्यक्रम सोचक से अधिक
    रोचक रहा
    श्री गोपाल प्रसाद व्‍यास जी का
    जिक्र हुआ हर बार
    यह तो उनका है अधिकार
    श्री गोविन्‍द व्‍यास जी ने तो
    व्‍यास कर दिया है
    हिन्‍दी भवन दिलों के पास
    और दिलवालों को
    हिन्‍दी भवन के पास
    कर दिया है।

    यज्ञ शर्मा जी के व्‍यंग्‍य की बानगी
    खूब सराही गई, हंस हंस कर सुनी गई
    व्‍यंग्‍य की कहानी ही थी ऐसी बुनी गई।

    कहते हैं कि वे ऐसा ही बुनते हैं
    बुनने में कई बार सप्‍ताह भी लगते हैं।

    फिर चलेंगे इसी माह में
    हिन्‍दी भवन जब रत्‍नावली कौशिक
    के काव्‍य-संग्रह का होगा लोकार्पण।

    2 टिप्‍पणियां:

    1. पुणे में दस मारे गये, फिर मोमबत्तियां जलाओ, स्यापा करो. लगता है अब शाहरुख "माइ नेम इज विक्टिम आफ पुणे बम ब्लास्ट बनायेंगे."

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    2. शुभकामनाएँ!
      प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!

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