चैनलों में भाषा की तमीज नहीं - मंजरी जोशी

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  • पुष्कर पुष्प
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  • एक जमाना था जब रेडियो में अज्ञेय जी, मनोहरश्याम जोशी, रघुबीर सहाय जैसे नामी पत्रकार , साहित्यकार और भाषा के ज्ञाता लोग काम करते थे. टेलीविजन में रघुवीर सहाय जी ने ही कमेंट्री शुरू की. करेंट अफैयर के कार्यक्रम शुरू किये. वह ज़माना कुछ और ही होगा. उसके बाद हमलोगों का ज़माना आया. हमारे समय में भी मुझे याद है कि यदि गलतियाँ भाषा की होती थी तो वहीँ निपटा दी जाती थी. प्रोड्यूसर को भी भाषा की तमीज होती थी. वह भी कई बार बताते थे कि ऐसे नहीं ऐसे पढो. इसका वाक्य विन्यास ऐसे होना चाहिए. फिर भी यदि गलती होती थी तो समीक्षक लोग उसपर लिखते थे. मेरा मानना है कि वह केवल बोला ही नहीं जा रहा है बल्कि पूरी संस्कृति ही संप्रेषित की जा रही है. लोग देख-सुनकर ही सीखते हैं. यदि विचार अच्छा है तो तो लोग वही सीखेंगे. READ MORE

    1 टिप्पणी:

    1. चैनलों में अब न तो भाषा है और न ही अनुशासन। वे केवल राजनीति के मोहरे भर हैं। या उनके दलाल।

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