कविता : ख़बरें ढाई ग्राम
Posted on by डॉ० डंडा लखनवी in
- डॉ०डंडा लखनवी
टीवी जब भी देखता, सुबह, दोपहर, शाम।
विज्ञापन तो कई टन, खबरें ढाई ग्राम।।
उसको इल्मों से अधिक, रुचिकर फिल्मी ज्ञान।
बस्ता कोने में पड़ा, टीवी रहता आन।।
फैशन की इस दौर में, ऐसी बही बयार।
मेकॅपमय अब सब्जियों, का रहता परिवार।।
उसके मेकॅप पर निकल, गए हमारे नोट।
सूखी-साखी सब्जियाँ, हरियाली के कोट।।
मीनू उनके मील का, इतना हुआ अनूप।
रहें छरहरा इसलिए, मात्र चाय ‘औ’ सूप।।
दुविधा में रहती फंसी, अक्सर उनकी जान।
एक ओर है डायटिंग, एक ओर पकवान।।
फैशन में दुबले हुए थे, मिस्टर नमकीन।
सुना उचक्का ले गया, घड़ी हाथ की छीन।।
दण्डित हो कर वे हुए, ‘डण्डा’ और निहाल।
अपराधी को जेल अब, लगती है ससुराल।।
घोषणाएं होती रहीं, सकल व्यवस्था ठीक।
लेकिन फिर भी हो गया, परसों पेपर-लीक।।
उधर चुनावों का उठा, छात्र-संघ में ज्वार ।
सिटी बसों का इस तरफ,उजड़ गया शृंगार।।
परिचय गठियावात का, डण्डा कहें निचोड़।
कसे हुए कब्जे लगें, वृ़द्ध - बदन के जोड़।।
दूरभाष : 0522-4025758
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बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंविल्कुल सही!
जवाब देंहटाएंक्या ख़ूब! वाह! वाह!! मेरे घर मे भी यही हाल है ..
जवाब देंहटाएंउसको इल्मों से अधिक, रुचिकर फिल्मी ज्ञान।
बस्ता कोने में पड़ा, टीवी रहता आन।।
अच्छे और उपयोगी दोहे। बधाई।
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