नमस्कार दोस्तों ! हिन्दुस्तान को आज़ाद हुए सालों हो गए पर अभी भी ऐसी बहुत सी समस्याएं हैं जो देश को खोखला कर रही हैं ! पर हम आशा करते हैं या कहें कि कोशिश है हमारी कि हम अपने देश को इन सभी समस्याओं से निजात दिला सकें! पेश है यह कविता !
भारत की आजादी को वीरों
ने दिया है लाल रंग !
यह लाल रंग क्यों बन रहा है ,
मानवता का लाल रंग !
आज़ादी हमने ली थी ,
समस्याएँ मिटाने के लिए
सब खुश रहें जी भर जियें
जीवन है जीने के लिए
पर आज सुरसा की तरह
मुंह खोले समस्याएं खड़ी
और हर तरफ चट्टान बनकर
मार्ग में हैं यह अड़ी
अब कहाँ हनु शक्ति
जो इस सुरसा का मुंह बंद करे
और वीरों की शहीदी में
नए रंग वह भरे
भुखमरी,बीमारी ,बेकारी
यहाँ घर कर रही
यह वही भारत भूमि है
जो चिड़िया सोने की रही
विद्या की देवी भारती
जो ज्ञान का भण्डार है
अब उसी भारत धरा पर
निरक्षरता का प्रसार है
ज्ञान और विज्ञान जग में
भारत ने ही है दिया
वेदों की वाणी अमर वाणी
को लुटा हमने दिया
वचन की खातिर जहां पर
राज्य छोड़े जाते थे
प्राण बेशक त्याग दें
पर प्रण न तोड़े जाते थे
वहीँ झूठ,लालच ,स्वार्थ का है
राज्य फैला जा रहा
और लालची बन आदमी
बस वहशी बनता जा रहा
थोड़े से पैसे के लिए
बहू को जलाया जाता है
माँ के द्वारा आज सुत का
मोल लगाया जाता है
जहां बेटियों को देवियों के
सदृश पूजा जाता था
पुत्री धन पा कर मनुज
बस धन्य-धन्य हो जाता था
वहीँ अब पुत्री को जन्म से
पहले मारा जाता है
माँ बाप से बेटी का वध
कैसे सहारा जाता है ?
राजनीती भी जहां की
विश्व में आदर्श थी
राम राज्य में जहां
जनता सदा ही हर्षित थी
ऐसा राम राज्य जिसमें
सबसे उचित व्यवहार था
न कोई छोटा ,न बड़ा
न कोई अत्याचार था
न जात पात ,न किसी
कुप्रथा का बोलबाला था
न चोरी लाचारी जहां पर
रात भी उजाला था
आज उसी भारत में
भ्रस्टाचार का बोलबाला है
रात भी क्या यहाँ पर
दिन भी काला काला है
हो गयी वह राजनीति
भी भ्रष्ट इस देश में
राज्य था जिसने किया
बस सत्य के ही वेश में
मजहब,धर्म के नाम पर
अब सिर भी फोड़े जाते हैं
मस्जिद कहीं टूटी , कहीं
मंदिर ही तोड़े जाते हैं
अब धर्म के नाम पर
आतंक फैला देश में
स्वार्थी कुछ तत्व ऐसे
घुमते हर वेश में
आदमी ही आदमी का
खून पीता जा रहा
प्यार का बंधन यहाँ पर
तनिक भी तो ना रहा
कुदरत की संपदा का भारत
वह अपार भंडार था
कण कण में सुन्दरता का
चंहु और प्रसार था
बक्शा नहीं है उसको भी
हम नष्ट उसको कर रहे
स्वार्थ वश हो आज हम
नियम प्रकृति के तोड़ते
कुदरत भी अपनी लीला अब
दिखा रही विनाश की
ऐसे लगे ज्यों धरती पर
चद्दर बिछी हो लाश की
कहीं बाढ़ तो कहीं पानी को भी
तरसते फिर रहे लोग
भूकंप,सुनामी कहीं वर्षा है
मानवता के रोग
ये समस्याएं तो इतनी
कि ख़त्म होती नहीं
पर दुःख तो है इस बात का
एक आँख भी रोती नहीं !
नमस्कार !
आज उसी भारत में
जवाब देंहटाएंभ्रस्टाचार का बोलबाला है
रात भी क्या यहाँ पर
दिन भी काला काला है
हो गयी वह राजनीति
भी भ्रष्ट इस देश में
एक बहुत अच्छी रचना.
धन्यवाद
यार विवेक इतना बतला दो, लिखने से क्या होगा?
जवाब देंहटाएंशब्द बङे ही मौजूँ, मगर असर क्या होगा?
क्या असर होगा, तेरी पीङा-कविता का.
यहाँ तो बाजा बजा हुआ है मानवाता का.
यह साधक पूछता सभी से केवल प्रश्न ये एक.
लिखने से क्या होगा, इतना कह दो यार विवेक.
हमें आदत हो गई है
जवाब देंहटाएंयह सब देखने सुनने सहने की