अविनाशजी ने इसी नुक्कङ पर चैन्नई में ब्लागर मीट की संभावना बताई. तत्काल अपना कार्यक्रम चैन्नई जाने का बनाया, टिकट बनने के बाद लिखा.
मिल ही लें,मिलना उत्तम, मिलने से ही वो मिलता.
जिससे मिलने की चाहत में, मनवा सबका खिलता.
मनवा खिल जाता है, उसकी एक झलक से यारों.
बस उससे मिलने की राहें,मिलकर बैठ विचारो.
कह साधक, वो मिल जाये तो हमें भी लिख दें.
मिलने से वो मिलता, मिलना उत्तम, मिल ही लें.
अब यह मिलना-मिलाना कब होता है, यह तो मिलने से ही पता चलेगा. मगर इस बीच लोक संघर्ष वाले सुमन जी से मिल लेते हैं. सुमन जी सदा संघर्ष के लिये तैयार मिलते हैं, और अपना अब संघर्ष में कोई विश्वास रहा नहीं. उनका धर्म उन्हें मुबारक- वामपंथी हैं ना! इस सङे-गले तन्त्र से न्याय पाने की आशा में हैं, जबकि तन्त्र बिचारा अपने अस्तित्व को किसी तरह बचाने में लगा है.! अब यहाँ न्याय-अन्याय पर सोचने की फ़ुर्सत किसे है? सुमन जी क्या मेरी बात सुन रहे हैं!
न्याय चाहते अब भी! सङे हुये इस तन्त्र से यारा.
कौन तुम्हें समझाये, कैसे हो सकता है गुजारा.
आगे यहाँ चटका दें. साधक उम्मेदसिंह बैद
साधक की काव्य यात्रा-२
Posted on by Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " in
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