ईश्‍वर से साक्षात्‍कार : सुधा ओम ढींगरा

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • एक हूं मैं
    पर नये नये रूपों में
    आता जाता हूं
    मैं हूं एक
    रूप अनेक
    पर सब रहें नेक।


    सम्पादक का आदेश मिला --
    ''ईश्वर से साक्षात्कार करो,
    पहले पन्ने पर छपवाओ,
    अखबार की सर्कुलेशन बढ़वाओ.''

    लगा, काम तो बहुत आसान है,
    किसी गुरु के यहाँ जाते हैं,
    भगवान से मिलते हैं,
    और इंटरव्यू छाप देते हैं .

    गुरु के द्वार पहुँची,
    चेलों ने मुलाकात करवाई,
    गुरु ने ऊँची-नीची भवें बढ़ाईं,
    काफी देर मौन रह वे बोले-
    ''तू पत्रकार है, तेज़ तर्रार है,
    लेखनी से मालामाल है,
    समझदार है, पर बेकार है.''

    जानती हो क्यों ?
    गुरु सेवा के लिए,
    तन, मन, धन चाहिए-दे सकोगी?
    अन्धविश्वासी-बन सकोगी ?
    गुरु की वाणी ही सत्य है- कह सकोगी ?
    गुरु के अन्दर ही भगवान है -मान सकोगी ?
    तभी तुम भगवान से मिल सकोगी....

    लगा काम आसान नहीं,
    गुरु का द्वार छोड़, मन्दिर का द्वार पकड़ा,
    जोतें जलाईं, घंटियाँ बजाईं,
    व्रत उपवास रख, वेद पुराण पकड़ा.
    अन्धविश्वासी, रुढ़िवादी बनी,
    पर भगवान पकड़ ना पाई.

    मन्दिर छोड़,
    माँ के घर लौटी-
    माँ ने कहा-
    '' बेटी, भगवन तो तेरे अन्दर है,
    स्वयं को पहचान, तू इसे पा लेगी.''

    स्वयं संचेतना में लग गई,
    भीतर कहीं रावण की कुटिलता,
    दुर्योधन की दुष्टता,
    कृष्ण का दर्शन, राम की मर्यादा पाई.
    पुराणों का ज्ञान, वेदों का सार,
    सब ऋचायें कोशिकाओं में पाईं.
    कौरवों-पांडवों का युद्ध- मेरी भावनाएँ हैं,
    कृष्ण-अर्जुन संवाद-मेरे तर्क वितर्क हैं,
    भगवन शक्ति है, विश्वास है-जो मेरे भीतर है.....

    आलेख ले, सम्पादक के पास गई,
    उन्हें बात पसन्द नहीं आई.
    नौकरी से हटा, महीने की पगार पकड़ा, बोले--
    कट्टर पंथियों से टक्कर लेना चाहती हो--
    ईश्वर से साक्षात्कार के मार्ग,
    तू बंद कर आई है--
    उसने तुझे बनाया, तूने उसे पाया, यह भ्रम है.

    उस तक जाने के रास्ते हैं...
    एक रास्ता पकड़ नहीं तो भटक जाएगी...
    तेरा कल्याण नहीं होगा....
    आज खड़ी हूँ ...
    ईश्वर और स्वयं की पहचान की ऊहापोह में......

    सुधा ओम ढींगरा

    24 टिप्‍पणियां:

    1. संपादक ने नहीं छापा ...अपना ब्लॉग तो है ...हिंदी ब्लोगिंग जिंदाबाद ...!!

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    2. sudhaa didi ke lekhani ke baare me kya kahun... kamaal ki baat kahihai unhone.. badhaayee..


      arsh

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    3. sudhaaji ko lakh laakh badhaai !

      bahut hi uttam kavita !

      vaise is kavita ka poora-poora aanand lena ho, toh sudhaaji ka audio album "maa ne kahatha" sunna chaahiye........


      sudhaa ji kavita karti hain toh sachmuch sudhaa hi bhar deti hain ishwar ne unhen shabdsudha se itnaa navazaa hai ki khazaanaa akoot hai

      dhnya hai sudhaaji ki lekhni..

      aur bhi likhne ka man hai lekin zyaada likha to ashok/kumar tel wala jumla lekar tapak padenge.. isliye itna hi..

      nukkad badhaai ka paatra hai

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    4. ये अपनी अंत:करण की आवाज है.

      यही इश्वर से साक्षात्कार है. उत्तम कविता.

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    5. ेआगे आगे देखिये ये सम्पादक खुद आवाज़ें लगायेंगे कि कुछ भी छापने को दो । हैपी ब्लागिन्ग का कमाल होगा तब। सुधा जी का धन्यवाद इस सुन्दर रचना के लिये।

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    6. वर्तमान दौर की पीत-पत्रकारिता पर करारा व्यंग्य ! बहुत ही सारगर्भित और निर्भीक !! रचना में आपके वाक्-चातुर्य का पुट विशेष परभाव जोड़ रहा है !! बधाई !!!!

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    7. पता नहीं किस गुरू के पास आप गईं. गुरू तो गुरू ही होता है. अब किसी शैतान ने गुरू का चोला ओढ़ लिया हो और आप उसे गुरू मानें तो यह गलती आपकी है. सम्पादकों की महिमा तो अनन्त है. वैसे फतवा देने वाले गुरुओं और मस्जिदों से वोट फलां को डालने वाले गुरुओं के बारे में आपके क्या खयाल हैं.

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    8. बहुत सुंदर लगी सुधा ऒम ढींगरा जी की यह रचना

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    9. बहुत जबरदस्त कटाक्ष है..न सिर्फ पत्रकारिता की दुनिया पर, वरन धर्मांवलंबियों और जाने किस किस पर.

      दो तीन बार-और बार बार पढ़ा इस रचना को. आनन्द आ गया.

      उस तक जाने के रास्ते हैं...
      एक रास्ता पकड़ नहीं तो भटक जाएगी...
      तेरा कल्याण नहीं होगा....
      आज खड़ी हूँ ...
      ईश्वर और स्वयं की पहचान की ऊहापोह में......


      -शानदार बात कही है.

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    10. सुधा जी ने रचना को सुधामय कर दिया .
      आगे भी मालामाल करेंगी . इसी आशा के साथ -

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    11. SUDHA JEE KEE KAVITA MEIN TEJ HAI.
      EK VAIDIK RICHA KEE TARAH VAH LAGEE
      HAI.BADHAAEE.

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    12. सुधा जी की मेल पर प्राप्‍त टिप्‍पणी अविकल प्रस्‍तुत है :-
      कल आपकी कहानी और आज आपकी कविता पढ़ी. दोनों को पढ़कर एक सुखद अनुभूति हुई. 'ईश्वर से साक्षात्कार' को पढ़कर लगा कि हमारे साहित्य में जो प्रगतिशील साहित्य है , आपकी कविता ने उसे एक नई दिशा दी है कि हम इन तमाम गहरे यथार्थ के बगैर प्रगतिशील नहीं हो सकते. सच कहूँ तो आपने थोथली परम्पराओं और अड्म्बकारी जीवन को एक गहरी चनौती दी है.आपको अपने इन साथी और पाठक की तरफ से ढेरों शुभकामनाएँ.
      चंद्रपाल सिंह
      09867269764

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    13. क्या कमाल की कविता है। कहां से यह दर्शन पाया।
      बहुत बधाई और धन्यवाद्।
      पुष्पा सक्सेना

      (मैं इसे पोस्ट नहीं कर पाई )

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    14. आज खड़ी हूँ ...
      ईश्वर और स्वयं की पहचान की ऊहापोह में......

      Sudhaji ek achoota shabnami andaaz is kavya rachna ko alag sthan par khada kar raha hai. apne vajood ki talaash mein bhi Eshwar ki zaroorat....!!!
      Swantrata kaisi hai ye ???
      Kai pakshon se is rachna ki kasavat aur bunawat par dil lahara utha.
      daad ke saaath
      Devi Nnagrani

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    15. कोई नहीं जानता कि वो कौन्‍ है । कहां है । किन्‍तु उस अज्ञात की खेज सभी हो है । सुधा जी की कविता उस अज्ञात के आवरणों को हटाने में सफल है । आवरण उन सारे छद्म आडंबरों के जिनको हमने उस ईश्‍वर नाम की वस्‍तु पर लगा दिया है । कविता हौले हौले से वे सारी परतें हटाती हैं जिन को ईश्‍वर पर लगाया गया है । और अंत में वहीं तक पहुंचती है जहां तक पहुचंना है । और फिर ये भी कि स्‍वयं को जान लेना ही ईश्‍वर को जान लेना है । कविता बहुत बेहतर तरीके से स्‍व और ईश्‍वर की खोज की बात करती है । बधाई

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    16. lagee raho ! kya jane kis bhesh me baba mil jayen bhagwaan !

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    17. सुधा दीदी की कविता में दार्शनिकता झलकती है
      इसमें रुढ़िवाद से भी संघर्ष का पुट है
      लेखिका यथार्थवादी विचारधारा की जीती जागती
      मूर्ति हैं शब्दों का चयन और समावेश अभूतपूर्ब है
      हरमे दिल में मकीं था मुझे मालूम न था
      रगे जाँ से भी करीं था मुझे मालूम न था
      में जुदाई में तड़पता था खता थी मेरी
      उसका हर नाज़ हसीं था मुझे मालूम न था
      सत्य देव चतुर्वेदी एवम चाँद शुक्ला हदियाबादी
      डेनमार्क से

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    18. सुधा जी

      एक सार्थक कविता के लिए बधाई. आपने बेलाग होकर कविता कहा. आज के गुरू गुरू कहां रहे----और सम्पादक-- अच्छा कटाक्शा है.

      पुनः बधाई

      चन्देल

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    19. सुधा जी,
      दार्शनिकता के साथ -साथ परोक्ष में कटाक्ष का पुट है इस रचना में । ढोंग का आवरण पहनने वाले उन लोगों पर भी जो भोली भली जनता को गुमराह करते हैं । लेकिन पूरी रचना का सार है -- अन्त: करण की आवाज़ सुनो, सारे उत्तर मिल जायेंगे । एक नये अन्दाज़ में लिखी यह रचना बहुत पसन्द आई। धन्यवाद ।

      सप्रेम शशि पाधा

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    20. ishwar se saakshatkaar Dr. sudha Om Dhingra ki kavita padhkr jeewan ki katu satyataa ka anubhv hota hai. Kavta ke andr ek kavita hai . jo mun ko choo jati hai,Mudi ankhon ko ek joyti dikhaati hai,
      prshno ke uttar aur gabmhir banaati hai,Chintan ka paath padhati hai.Sudha ji sahitya har ang ko janti hain aur jisko chhu leti hain , usme char chand laga deti hain. Kavita me bhut dam hai . Shiam Tripathi

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    21. धर्म की विकृत विडम्बनाओं से विक्षिप्त मन को धर्म की तहों तक जाने की छटपटाहट है. गुरुडम के प्रति, आज की मानसिकता के प्रति आक्रोश भी है. भटकाव भी अंततः कभी लक्ष्य की राह भी बनता है क्योंकि हम त्रुटियों से सीखते भी तो हैं. आत्म साक्षात्कार की चौखट पर खड़ा संवेदित मन आज हर्षित है क्योकि ईश्वर कभी बाह्य नहीं अन्तः प्रवाहित ऊर्जा है, जो अनुभवगम्य है ज्ञान गम्य नहीं. अंतस में प्रवाहित ऊर्जा का आभास होते ही प्रज्ञा चेतन हो जाती है.
      डॉ मृदुल कीर्ति

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    22. वो मेरे बिन कुछ नहीं, मुझसे वो है प्रमाणित.
      उसके बिन मैं ना टिके, दोनों साथ प्रमाणित.
      दोनों साथ प्रमाणित, फ़िर बङा तो मैं है.
      मैं ही उसको, खुदको, जगको,जानेगा यह सच है.
      साधक सह-अस्तित्व, नहीं कुछ भी इसके बिन.
      हम दोनों हैं साथ, नहीं कुछ वो म्रेर बिन.
      sahiasha.wordpress.com

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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