साधक-परिक्रमा-१

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  • Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak "
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  • अविनाश वाचस्‍पतिजी लिखचीत(चैट) पर मिल गये. सुबह-सुबह तबियत हरी हो गई. उनसे पाँच मिनट की बात में ही नुक्कङ पर नियमित लिखने का भाव बन गया.

    निर्णय हुआ तो क्रियान्विति भी होनी चाहिये. समय हालाँकि बहुत कम है, पर इसे सरकारी खाते में तो नहीं ही डाला जा सकता ना, तो यहीं से शुरु करते हैं

    विस्फ़ोट पर प्रकाशित एक आलेख पढा. जीडीपी का मानव के सुख के साथ कोई लेना-देना नहीं, ऐसा लेखक का मत रहा. मुझे इससे असहमति है. मुझे तो यह दिखता है कि जैसे-जैसे जीडीपी का आंकङा ऊपर उठता है, वैसे वैसे दुःख भी बढता है. आम जनता का और गरीब होना, अमीरी-गरीबी के बीच खाई का बङा होना तो लेखक ने ही बताया…. सब जानते-मानते भी हैं; पर जिसने धन कमा लिया- याने जो अरबपति-करोङपति बन गया; उसके दर्द को कोई नहीं समझना चाहता. वह भी दुखी-दरिद्र ही है, बल्कि उसका दुख और दरिद्रता और बढे. शोषण कभी सुख नहीं देता, शोषक को सुखा देता है.

    जीडीपी का आंकङा, शोषण की सौगात.
    खुशियाली परिवार में, जहाँ प्रेम की बात.
    चले प्रेम की बात, सिर्फ़ देना ही देना.
    बाज़ारी यह तन्त्र सिखाता लेना-लेना.
    यह साधक कवि, पाठ पढाता सिर्फ़ प्रेम का.
    है शोषण साक्षात, आकंङा जीडीपी का.

    बीजेपी पर एक लेख पढा. गडकरी के नैतृत्व में बीजेपी पुनः सँवरेगी….. तो!

    चुस्त और तन्दुरुस्त हुई तो क्या कर लेगी?
    सङे आम को कौन व्यवस्था स्वस्थ करेगी?
    स्वस्थ करे चिन्तन-धारा, वह बिन्दु कहाँ है?
    सबको करे समाहित, ऐसा सिन्धु कहाँ है?
    कह साधक कवि प्रश्नों का अनवरत सिलसिला.
    बीजेपी को घेरे बैठा कठिन सिलसिला.

    कठिनाईयों का सिलसिला पूरा पढ़ने और टिप्‍पणी देने के लिए यहां पर क्लिक कीजिएगा

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