आज की डायरी से-

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  • Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak "
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  • १०-१२-२००९,प्रातः ८ बजे = कल दिनभर कम्प्युटर, दिनचर्या अस्त-व्यस्त, फ़ोन आये, मैंने नहीं किया. सिर्फ़ स्नेहको बताया कि तुम्हारे बिना ऐसा बेहाल है. खाना भी दोनों समय हनुमानजी के हाथ की बनी बाजरे की मीठी रोटी-दही खाया. ब्लाग पर काफ़ी आलेख पोस्ट किये. विस्फ़ोट, लोकमंच और हिन्दी ब्लाग्स पर एक भी आलेख बिना ट्टिपणी के नहीं छोङा. अपने ब्लाग पर कुछ और उपकरण सजाये, बाकी सजाने की विधा जानी. यु-ट्युब से पा-फ़िल्म लेनी चाही, नीतेशसे सीखूँगा. मेरा एक पूरा डोकूमेन्ट गायब हुआ, कल नीतेश को आना था, नहीं आया. बाबूदानजी आये, खेत का औजार जेरणी बनवा कर लाये. काम कुछ नहीं सत्संग-चाय चली.
    आज प्रातः ३-३० पर जाग गया. ६-३० तक कम्प्युटर, फ़िर साफ़-सफ़ाई, नाश्ता, पानी भरा और कम्प्युटर. दिनचर्या के छोटी-छोटी बातें जीवन-जागृति में सहायक बन रही हैं. १- आज टंकी का पानी चढाया, बह गया, काफ़ी पानी बेकार गया. इन दिनों एक-एक बूँद पानी का सदुपयोग चल रहा है. पानी नीली में ना बहकर बगिया में सींचा जा रहा है. मित्र खूमारामजी ने पानी का उलाहना दिया तो अच्छा लगा. २- बगिता के एक क्यारे को आधा फ़ुट खोदकर सारे कंकर-पत्थर निकाले. पहले तो लगा कि दो-दिन में भी पूरा नहीं होगा, लेकिन मात्र एक घंटे में काम पूरा हुआ, मन उत्साह से भर गया. .... कल कहानी शुरु ना कर सका. और दो दिनमें कहानी ना लिखी तो प्रवाह दूसरा बन सकता है, आज शुरु करना है. सारे दिनके सार्थक व्यस्तता अच्छी लगती है. घर से बाहर जाने की जरुरत ही नहीं, समय बचता है.
    परसो जी की भैंसें सर्दी में बिना छत के ठंड पी गई. दो- दिन दूध नहीं आया, तो दसियों परिवार परेशान हुये. आसरा बनाने के लिये पैसे नहीं हैं. मुझसे और पैसे लेना स्वीकार नहीं. पहले आगे की उधारी चुकायेंगे, फ़िर .... जबकि मैंने उनको उधार नहीं दिया है. मेरे पास बेकार पङे थे, उनकी जरूरत दिखती है. इस बारे में इस्लाम सही है. ब्याज को कुफ़्र माना है. एक भाई का पैसा दूसरे भाई के काम आ गया, ब्याज कैसा! ब्याज किससे? अपने ही भाई के साथ कौन ऐसा व्यापार करेगा! वैसे भी व्यापार का आधार तो ठगी और शोषण ही है. मगर परसो जी ना माने. गरीब आदमी की पूँजी उसकी ईमानदारी है, अमीर तो दोनों तरहसे दरिद्र ठहरा.

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