लिब्राहन आयोग को लेकर सर्वत्र घमासान मचा है- संसद, प्रिन्ट मीडीया और ब्लाग्स पर .अच्छा है. पाप की चर्चा जितनी ज्यादा, उतना अच्छा. कुछ ट्टिपणियाँ कुण्डलियों में भेजी, उनका जायजा लें.
लिब्राहन आयोग की हुई फ़जीती मित्र.
राजनीति ने नीति का खूब बिगाङा चित्र.
खूब बिगाङा चित्र, इसे ही अच्छा मानो.
घङा पापका फ़ूटेगा, निश्चित ही जानो.
पर साधक बिन समझ के क्या होगा बोलो तो.
समझ की खातिर अन्तर के ताले खोलो तो.
समझ बने, तभी समाधान है. गोविन्दाचार्यजी ने भी आपत्ति दर्ज कराई, क्या जरूरत थी! इस व्यवस्था (!) से न्याय की आशा क्यों?
भ्रमित व्यवस्था से करें, अगर न्यायकी आस.
हे गोविन्दाचार्यजी, बात नहीं है खास.
बात नहीं यह खास, लिब्राहन क्या कर सकते.
सोचके देखें आप स्वयं, कुछ ना कर सकते.
कह साधक खुद जागें, समझें प्रकृति-व्यवस्था.
ना कर न्यायकी आस, क्योंकि है भ्रमित व्यवस्था.
अगर न्याय चाहिये तो पहले न्याय को समझना पङेगा जी! शासन तो खुद अपनी बला टाल रहा है. वह किसका भला करेगा?
अपनी बला को टालना, शासन का दस्तूर.
रक्षक ही भक्षक बने, लोग बहुत मजबूर.
लोग हुये मजबूर, न्याय की आशा टूटी.
हर हिस्से में आग, देश की किस्मत फ़ूटी.
कह साधक कवि मानव संभले, स्वयं छला जो.
शासन का दस्तूर टालना अपनी बला को.४
मानव खुद समझे कि प्रकृति की व्यवस्था क्या है. सृष्टि की सर्वोच्च कृति है मानव. अस्तित्व में मानव की प्रत्येक न्यायपूर्ण इच्छा पूरी होने की व्यवस्था है, फिर भी वह दरिद्र क्यों? समझ नहीं तो समाधान नहीं.
सच कहते हैं गौतमजी, राजनीति की चाल.
मानव बिखरा ही रहे, रहे सदा बेहाल.
सदा रहे बेहाल, प्रकृत्ति की उत्तम कृति यह.
नित्य-निरन्तर सुख पानेका अधिकारी यह.
सुन साधक जीवन विद्याके सुर कहते हैं.
राजनीति है चाल गौतमजी सच कहते हैं.९
फिरभी सुनलो मित्रवर, कहा अधूरा सत्य.
सभी विधायें भ्रमित हैं, समझो सच्चा तथ्य.
समझो सच्चा तथ्य, रहो मत किसी भरोसे.
देश-समाज-मानव है केवल राम भरोसे.
कह साधक लौटे मानव-विश्वास ये गुनलो.
जानो पूरा सत्य, मित्रवर फिरसे सुनलो.
गौतम जी के आलेख पर यह ट्टिपणी कई बातें एक साथ कहती हैं. पता नहीं उन्होंने इसे देखा भी है या नहीं. कोई बताये उनको भी. बताये कि भारत मानव के लिये है, पूरी धरती मानव के उत्सव का मंच है.
देश ना मुस्लिम-हिन्दू का, मानवता का देश.
मानव बनकर सोचना, कोई नहीं विशेष.
कोई नहीं विशेष, राजनीति को छोङो.
समझो मानव, जीवन के तारों को जोङो.
सुन साधक इस देहको समझो जीवन-वेश.
जागृति पाकर जानलो, भारत मानव-देश.१२
बाँट दिया इंसान को,कितने टुकङे देख.
पूजास्थल ही हिंसा के निम्मित्त बनते देख.
निमित्त बनते देख, राम-अल्ला और लल्ला.
परमेश्वर है एक, झगङते नित्य पुच्छल्ला.
कह साधक कवि समझ बने तो भ्रम टूटेगा.
सम्प्रदाय की कैद से मानव तब छूटेगा. १७
आज बस! बाकी कल फ़िर मिलेंगे.
लिब्राहन आयोग- एक नजरिया!
Posted on by Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " in
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बढ़िया रहा लिब्राहन पुराण!
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