एक अकेली मैं हूँ और साथ मेरे मेरी तन्हाई
रात घिरी निस्तब्ध मगर मुझे नींद ना आई
दिलो को चीरते हैं खामोशियों के पसरे सन्नाटे
खोया खोया चाँद भी गुमसुम ख़ामोशी छाई !
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एक अकेली मैं हूँ और साथ मेरे मेरी तन्हाई
Posted on by आकाँक्षा गर्ग ( Akanksha Garg ) in
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Shaandar Abhivyakti!...
जवाब देंहटाएंRegards
Ram K Gautam
बहुत अच्छी लगी आप की यह कविता. धन्यवद
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