अक्सर यह सुनने - पढने में आता है कि आज के संपादक, मैनेजर हो गए हैं। बात कुछ हद तक सही भी है. कारपोरेट के बढ़ते दवाब में मीडिया संस्थानों में संपादकों को प्रबंधक की भूमिका भी निभानी पड़ती है और शायद कई बार उनके सम्पादकीय कौशल पर प्रबंधकीय दायित्व हावी हो जाता है. इस सिलसिले में वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली कहते हैं - 'वर्तमान में मीडिया का कॉर्पोरेटाईजेशन इतना बढ़ गया है कि एडिटर अब मैनेजर हो गए हैं. ' उन्ही को बात को विस्तार देते हुए दिल्ली सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग के निदेशक 'उदय सहाय' कहते हैं कि - '90 फीसदी मीडिया संस्थानों की दीवार ढह चुकी है. अब मार्केटिंग का काम एडिटोरिअल वाले करते हैं.' विस्तृत ख़बर ..
मालिकों को ब्रेकिंग न्यूज़ भी चाहिए और विज्ञापन भी. चैनल हेड आखिर करे तो क्या करे ?
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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मालिकों को ब्रेकिंग न्यूज़ भी चाहिए और विज्ञापन भी। चैनल हेड आखिर करे तो क्या करे ?
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प्रिंट मीडिया में गर लाला लोग संपादक हो सकते हैं तो इलेक्ट्रिक मीडिया में संपादक का मैनेजर हो जाना कौन सी बड़ी बात है.
जवाब देंहटाएंकरवाचौथ की आपको बहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंगलत बात संपादक मैनेजर नही,मैनेजर संपादक हो गये हैं और संपादक बाबू।
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