बचपन का दशहरा याद आ रहा है - अजित अंजुम,मैनेजिंग एडिटर,न्यूज़ 24

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  • पुष्कर पुष्प
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  • न जाने कहाँ खो गए वो बचपन के दिन। जब हमें इंतज़ार होता था दशहरे का. नए कपड़े पहनकर घूमने का उल्लास होता था. दुर्गा जी को देखने जाते थे. यह शर्त लगती थी कि कौन कितने दुर्गा जी को देखता है. वहां दशहरा का मतलब उत्सव होता था. मेला होता था. यहाँ दशहरा का मतलब एक और छुट्टी. यह कहना है न्यूज़ 24 के मैनेजिंग एडिटर अजित अंजुम का...आगे पढ़ें।

    5 टिप्‍पणियां:

    1. दशहरा विजयत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना

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    2. बहुत सुंदर लिखा आप ने बचपन की याद को, शायद हम सब का बचपन कुछ ऎसा ही था, धन्यवाद
      आप को ओर आप के परिवार को विजयदशमी की शुभकामनाएँ!

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    3. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    4. अजित जी, विजयादशमी की बधाई...
      आपके बचपन का संस्मरण पढ़ कर अच्छा लगा...साथ ही अपना बचपन भी याद आ गया...साथ ही याद आ गया जगजीत सिंह का ये गीत...

      ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
      भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
      मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
      वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी

      रही बात रावण और दुर्गा की...तो महानगरों में कदम-कदम पर रावण, अब दुर्गा करे भी तो क्या करे...कितने रावणों को मारे...एक मरता नहीं कि हाइड्रा के सिर की तरह दस और निकल आते हैं...

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    5. रोचक संस्मरण है।
      असत्य पर सत्य की जीत के पावन पर्व
      विजया-दशमी की आपको शुभकामनाएँ!

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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