दिविक रमेश के कविता संग्रह गेहूं घर आया का लोकार्पण संपन्न
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
Labels:
गेहूं घर आया,
दिविक रमेश,
लोकार्पण
किताबघर प्रकाशन से सद्य प्रकाशित दिविक रमेश के कविता-संग्रह ‘गेहूँ घर आया है’ का लोकार्पण प्रोफेसर नामवर सिंह, प्रोफेसर केदारनाथ सिंह और प्रोफेसर निर्मला जैन ने समवेत रूप से किया। इस अवसर पर डॉ. केदारनाथ सिंह ने कहा कि दिविक रमेश ऐसा कवि है जिसका एक पृथक चेहरा है। यह चेहरा-विहीन कवि नहीं है बल्कि भीड़ में भी पहचाना जाने वाला कवि है। यह संकलन परिपक्व कवि का परिपक्व संकलन है और इसमें कम से कम 15-20 ऐसी कविताएँ हैं जिनसे हिंदी कविता समृद्ध होती है। इनकी कविताओं का हरियाणवी रंग एकदम अपना और विशिष्ट है। शमशेर और त्रिलोचन पर लिखी कविताएँ विलक्षण हैं। उन्होंने अपनी बहुत ही प्रिय कविताओं ‘पंख’ और ‘पुण्य के काम आए’ का पाठ भी किया। दिविक रमेश मेरे आत्मीय और पसन्द के कवि हैं। इस संग्रह को उन्होंने रेखांकित करने और याद करने योग्य माना। कविताओं की भाषा को महत्वपूर्ण मानते हुए उन्होंने कहा कि दिविक ने कितने ही ऐसे शब्द हिंदी को दिए हैं जो हिंदी में पहली बार प्रयोग हुए हैं।
प्रो. निर्मला जैन को यह संग्रह विविधता से भरपूर लगा और स्थानीयता के सहज पुट के कारण विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण भी लगा। उन्होंने माना कि इस महत्वपूर्ण कवि की ओर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उतना नहीं दिया गया। स्वयं मैं नहीं दे पाई थी। उन्होंने ध्यान दिलाया कि केवल ‘गेहूँ घर आया है’ ही में नहीं बल्कि जगह जगह इनकी कविताओं में ‘दाने’ आए हैं। दिविक रमेश के पास एक सार्थक और सकारात्मक दृष्िट है साथ ही वे सहज मानुष से जुड़े हैं। ऐसा नहीं लगता कि इस संग्रह में उनकी आरंभिक कविताएँ भी हैं। सभी कविताएँ एक प्रौढ़ कवि की सक्षम कविताएँ हैं। एक ऊँचा स्तर है। न यहाँ तिकड़म है और न ही कोई पेच। दिविक रमेश किसी बिन्दू पर ठहरे नहीं बल्कि निरंतर परिपक्वता की ओर बढ़ते चले गए हैं।
प्रोफेसर गोपेश्वर ने इन कविताओं को बहुत ही प्रभावशाली मानते हुए कहा कि ये कविताएँ खुलती हुई और संबोधित करती हुई हैं। अकेलेपन या एकान्त की नहीं हैं। विशेष रूप से उन्होंने ‘गप्प ठोकना’ जैसे शब्दों की ओर ध्यान दिलाते हुए दिविक रमेश की काव्य-भाषा को हिंदी काव्य-भाषा को समृद्ध करने वाला माना। साथ ही कहा कि दिविक रमेश ने काव्य-भाषा में एक नई परंपरा डाली है। उसे रेखांकित किया जाना चाहिए। उन्हें ये कविताएँ बहुत ही अलग और अनूठी लगी। उन्होंने इस बात का अफसोस जाहिर किया कि इस समर्थ एवं महत्वपूर्ण कवि की ओर इसलिए भी अपेक्षित ध्यान नहीं गया क्योंकि साहित्य जगत के उठाने-गिराने वाले मान्य आलोचकों ने इनकी ओर ध्यान नहीं दिया था। सार्वजनिक जीवन की ये कविताएँ निश्िचत रूप से अपना प्रभाव छोड़ती हैं। उन्होंने अपनी अत्यंत प्रिय कविताओं में से एक ‘पंख से लिखा खत’ का पाठ भी किया।
प्रताप सहगल के अनुसार दिविक रमेश कभी पिछलग्गू कवि नहीं रहा और उनके काव्य ने निरंतर ‘ग्रो’ किया है। ये कविताएँ बहुत ही सशक्त हैं। प्रणव कुमार बंद्धोपाध्याय ने संग्रह की तारीफ करते हुए बताया कि वे इन कविताओं को कम से कम 15 बार पढ़ चुके हैं। उनके अनुसार इन कविताओं में समय के संक्रमण का विस्तार मिलता है। संग्रह को उन्होंने हिन्दी कविता की उपलब्धि माना।
प्रोफेसर नामवर सिंह ने कहा कि वे किसी बात को दोहराना नहीं चाहते और उन्हें कवि केदरानाथ सिंह के विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण लगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे केदरनाथ सिंह के मत पर हस्ताक्षर करते हैं। संग्रह की ‘तीसरा हाथ’ कविता का पाठ करने के बाद उन्होंने कहा कि दिविक की ऐसी कविताएँ उसकी और हिन्दी कविता की ताकत है और यही दिविक रमेश है। ऐसी कविता दिविक रमेश ही लिख सकते थे और दूसरा कोई नहीं। इनकी शैली अनूठी है। उन्होंने माना कि इस संग्रह की ओर अवश्य ध्यान जाएगा। मैं इन्हें बधाई देता हूँ। सभा के प्रारंभ में संग्रह पर दिनेश मिश्र ने अपना आलेख पढ़ा। उन्होंने कहा कि ये कविताएँ जगाती हैं। गोष्ठी का संचालन प्रेम जनमेजय ने किया और यह आयोजन भारतीय सांस्कृति संबंध परिषद् और व्यंग्य-यात्रा के संयुक्त तत्वावधान में आजाद भवन के सभागार में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अनेक सुप्रसिद्ध साहित्यकार और गणमान्य पाठक उपस्थित थे। प्रारंभ में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के श्री अजय गुप्ता ने सबका स्वागत किया।
-- प्रेम जनमेजय
Labels:
गेहूं घर आया,
दिविक रमेश,
लोकार्पण
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
दिविक रमेश जी को हमारी हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंउनकी एक-आध रचनाएं भी नुक्कड़ पे दीजिये
दिविक रमेश जी को हमारी हार्दिक बधाई!!!
जवाब देंहटाएंदिविक रमेश जी को बधाई!
जवाब देंहटाएंरपट लगाने के लिए आपको धन्यवाद!
खबर के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदिविक रमेश को बधाई! आप को रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदिविक जी, बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दिविक रमेश जी को हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंखबर हालाँकि एकदम नई नहीं रही, फिर भी महत्वपूर्ण इस दृष्टि से है कि छूट गए लोगों तक 'गेहूँ…' इस माध्यम से पहुँच जाएगा। दिविक शुरू से ही संवेदनशील कवि रहे हैं। उन्हें साधुवाद और आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदिविक जी एक संवेदन शील कवि हैं उनके इस नए काव्य संग्रह के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंhamaree bhi badhaai...
जवाब देंहटाएंदिविक जी को ताजा कविता संग्रह के लिए बधाई. अब चाह यही है कि भोपाल में यह किताब कब तक खरीदने के मिलेगी.
जवाब देंहटाएंदिविक जी को बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंदिविक जी को बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंhey bhut accha likha ha tumne
जवाब देंहटाएं