
ये मीडिया इन्डस्ट्री का अब तक का शायद सबसे खतरनाक दौर है। ये इन्डस्ट्री के कुछेक लेकिन प्रभावशाली मीडियाकर्मियों के एक का दो,दो का चार बनानेवाले पूंजीपतियों को सब्जबाग दिखाने का खतरनाक दौर है। अगर कोई मीडियाकर्मी इस दम से कहता है कि आप पैसे तो लगाइए,हम सब देख लेगें तो आप अंदाजा लगाइए कि वो चैनल को बनाए रखने में किस-किस स्तर पर मैनेज करने का काम करेगा। पूंजीपति और मीडियाकर्मी के बीच जो एक तीसरी जमात तेजी से पनप रही है वो है उन गिद्ध मीडियाकर्मियों की जिनका चरित्र पूंजीपतियों का है सामाजिक स्तर की पहचान मीडियाकर्मी की है। सामाजिक तौर पर वो मीडियाकर्मी हैं जबकि प्रोफेशनली वो मालिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। समय के हिसाब से अगर सारे मीडियाकर्मियों की तरक्की होती रही तो एक दिन सब के सब इसी जमात के हिस्से होंगे। ईंट,पत्थर और सीमेंट से जोड़कर दबड़ेनुमा फ्लैट जिसे कि बाजार सपनों का आशियाना कहता है,बनाकर बेचनेवाले लोग जब इस प्रोफेशन में पैसे लगाते हैं तो आपको समझने में परेशानी नहीं होती कि मीडिया कितना तेजी से धंधे में तब्दील हो रहा है। आपको विश्वास न हो तो चले जाइए किसी चैनल के न्यूज रुम या असाइनमेंट डेस्क पर। वहां आपको जो शब्द सुनाई देंगे,खबरों के साथ जो लेबल लगे मिलेंगे उससे आपको समझ आ जाएगा कि मीडिया की तस्वीर असल में क्या बन रही है। आगे पढ़ें ...
सब पैसे का खेल है..व्यापार कभी उपर तो कभी नीचे..
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी...
वे पैसे तो लगा ही चुके हैं... कई चैनलों में... एक और सही!! ‘सच का सामना’ तो करना ही है:)
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