पैसे लेकर डिग्री लेंगे और पैसे लेकर ख़बरें छापेंगे

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  • पुष्कर पुष्प
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    सुना है पूरब के आक्सफोर्ड के जन संचार विभाग की उन कुर्सियों पर बैठ कर पढ़ने वाले स्टूडेंट शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ इलाहाबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन के ख़‍िलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, जिन पर बैठ कर कभी हम पढ़ा करते थे। मेरठ में बैठ कर भी पोर्टल और ब्लाग पर पढ़ा है कि केंद्रीय यूनिवर्सिटी बन जाने के बाद भी कोई प्राक्टर साहब स्टूडेंट को मुर्गा बना रहे हैं। दोनों खबरें सुनी। एक स्वनामधन्य तथाकथित अकादमिक रूप से दक्ष वीसी के वक्त में ऐसा हो रहा है। अनुशासन के नाम पर तानाशाही की जा रही है। पढ़ा-लिखा वाइस चांसलर कह रहा है कि खबरनवीस की क्या हैसियत, जो मुझसे बात करे। सुना है और कभी कभी देखा भी है कि अकादमिक रूप से बेहद जानकार ये आदमी पूरे शहर का फीता काट सेलीब्रेटी बन चुका है। अपने से सवाल पूछने से ये साहब इतने नाराज़ हुए कि जनसत्ता के संवदादाता राघवेंद्र के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। अब यूनिवर्सिटी में पच्चीस साल पुराने जन संचार विभाग होते हुए भी ये साहब जगह जगह यूनिवर्सिटी में अखबार के अखाड़ेबाज़ पैदा करने की दुकानें खुलवा रहे हैं। आगे पढ़े.....

    2 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
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