जब से कसब ने अपना गुनाह कबूला है, उसे फांसी पर लटका दिए जाने की दलीलें तेज़ हो गई हें। बात भी सही है जब सब कुछ साफ़ साफ़ है तो अब देर किस बात की, कम से कम उन शहीदों की आत्मा को तो शान्ति मिलेगी जो इस हादसे की चपेट में आए थे।
लेकिन मुझे लगता है की हमें इस मुद्दे के दूसरे पहलु पर भी गौर करना चाहिए, अत्यधिक भावनाओं में बहकर कुछ ठोस कदम लेने से पहले। कसब ने भले ही एक जघन्य कृत्य किया है पर यह कृत्य उससे जिन लोगों ने करवाया है वे लोग अभी हमारे दायरे में नही आए हें। हमारे पास उन लोगों के ख़िलाफ़ कोई पुख्ता सबूत नही हें और इसीलिए पाकिस्तान अब तक उन्हें सुरक्षित पनाह देने में सफल रहा है। जिस तरह की आँख मिचौली इस पूरे कृत्य के असली मुजरिम लख्वी के मामले में देखने को मिली है उससे लगता नही की इतनी आसानी से इस जघन्य काण्ड के असली करता धरता कभी क़ानून के चंगुल में आकर अपने किए की सज़ा पायेंगे। कसब तो बस एक मोहरा है, एक छोटा सा प्यादा, इस खेल के असली वजीर तो अभी भी हमें मात दे रहे हें।
ऐसे में इस पूरे मामले की एकमात्र कड़ी, एकमात्र सबूत जो शुरू से इस पूरे काण्ड के रचयिताओं के साथ रहकर प्रक्षिक्षण लिया है, उसे अगर हम मार देंगे तो यकीन मानिए, हमसे ज्यादा खुश तो वो लोग होंगे। वो तो ख़ुद भी कब से कसब को मिटा देना चाहते होंगे, इसीलिए तो उसे इस दर्जे की सुरक्षा देनी पड़ रही है।
कसब की ज़िन्दगी की उनके लिए कोई अहमियत नही, उसके जैसे कितने और अभी वहाँ प्रशिक्षण ले रहे होंगे। सुसाईड बोम्बेर्स की वहाँ कोई कमी थोड़े ही है। वहाँ तो खेती है इसकी। अभी अगर कसब बचकर निकल गया(जो की असंभव है!) तो उन्हें कोई फर्क थोड़े पड़ेगा।
लेकिन कसब की ज़िन्दगी की अहमियत हमारे लिए हो सकती है, उन लोगों तक पहुँचने के लिए, उनके बारे में और बातें जानने के लिए। कसब को मारकर हमारी उन ज्वलंत भावनाओं को तो शान्ति मिल सकती है लेकिन मैं नही चाहती की ऐसा हो, क्योंकि जब तक असली गुनाहगार जिन्होंने ये पूरा खेल रचा है उन्हें सज़ा नही मिल जाती, ये आग जलते रहनी चाहिए, ये जूनून, ये दबाव कायम रहना चाहिए। कसब अब हमारे कब्जे में है, उसका जिंदा बचना नामुमकिन है, तो फ़िर चिंता किस बात की। हमें उसे पूरी तरह से इस्तेमाल करके ही ख़त्म करना चाहिए। यही ऐसे लोगों की सज़ा है, रोज़ मर मर के जीना, रोज़ अपनी मौत की राह देखना।
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Just to add a point in the case, after Kasab is hanged and pronounced dead where shall he be creamated. Indians will not allow him to bury in India as they refused to the other nine 26/11 perputraters, and will pakistan accept the dead body of kasab the way they accepted his nationality?
जवाब देंहटाएंविचारणीय मुद्दे उठाए हैं आपने ! गम्भीर मसला है यह !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मुद्दा उठाया है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य बात है | कसाब को फँसी देने से कुछ नहीं होगा पर इसके जरिये सत्यता को उजागर कर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे |
जवाब देंहटाएंतो आप गले लगा लें. यदि २०० लोगों के हत्यारे को फांसी नहीं दी जायेगी तो उन्हें दी जानी चाहिये जो हमले में बच गये. आपने कौन से सबूतों का अध्ययन कर लिया है जो कह रही हैं कि सबूत नहीं हैं. भारत के वे इन्वेस्टीगेटर्स बेवकूफ हैं, एफ०बी०आई० के लोग बेवकूफ हैं जिनके द्वारा दिये गये साक्ष्यों के बाद ही पाकिस्तान में कुछ आतंकवादी पकड़े गये, चाहे दिखावे के लिये ही सही. यह बात मानी जा सकती है कि भारत को और ठोस कार्रवाई करना चाहिये.
जवाब देंहटाएं@भारतीय नागरिक: तीन बातें कहना चाहूंगी:
जवाब देंहटाएं१) अगर मेरे इस लेख के कारण कसब को फांसी लगना रुक जाए तो उससे पहले मैं मानवता की गुनाहगार होउंगी और फांसी पर चढ़ने के काबिल होउंगी। मैं सिर्फ़ सिक्के के दूसरे पहलु की बात कर रही हूँ, वह भी भारत के हित में। फांसी तो उसे लगनी ही है ये तो वो भी जानता है। मुझे पूछकर तो भारत सरकार काम नही करेगी।
२) जहाँ तक सबूत की बात है, इंसान होशो हवास में जो भी कहे, narco analysis जैसी तकनीकों में बहुत कुछ और उगलवाने की संभावना रहती है। बेवकूफ न FBI है न सरकार, इसीलिए जो हो रहा वो हो रहा है।
३) टिपण्णी की पहली पंक्ति के बिना भी आपकी बात समझ में आ रही थी।