क्या आपने भी कभी ध्यान दिया है कि आजकल कार खरीदना केवल प्रतिष्ठा का ही कारण नहीं रह गया है बल्कि ऐसे लोग भी लाइन लगाए दिखते हैं जो बेचारे कार अफ़ोर्ड तो नहीं कर सकते पर दूसरों की देखा-देखी जगह घेरने की होड़ में पीछे नहीं छूट जाना चाहते. ऐसे सज्जन लोग या तो पुरानी कारों पर टूट पड़ते हैं या फिर उनकी नई कारें खड़े-खड़े ही पुरानी हो जाती हैं. ये लोग हर छुट्टी वाले दिन कार को घूं-घूं कर स्टार्ट कराने की पुरज़ोर कोशिश में जुटे मिलते हैं. कार का हवा-पानी चैक हो जाता है, पड़ोसियों को खांसी-सिरदर्द और बच्चों का मनोरंजन भी, सब साथ-साथ हो जाते हैं.
एक समय था जब कोई कालोनी में ये पूछ ले कि उनके यहां जाना है जिनके घर कार है तो बच्चे ऐसे आदमी को उस घर तक पहुंचा कर आते थे क्योंकि तब पूरी कालोनी में एक-आध घर में ही कार होती थी. आज शहरी मध्यवर्ग के आदमी के घर, कार न हो तो यह ख़बर होती है.
आज का ये कार खरीदने का गणित भी अजब है. पहले, लोन की चाह रखने वाले मध्यवर्गीय बाबू को बैंक का चौकीदार उसकी शक्ल देखकर ही, वहीं गेट से ही भगा देता था. लेकिन, विदेशी प्राइवेट बैंकों ने मध्यवर्ग को भी छोटे-मोटे लोन देने की शुरूआत क्या की, पूरी बैंकिग व्यवस्था ही मध्यवर्ग के पीछे ल्हुस ली. बेचारा मघ्यवर्ग, मघ्यवर्ग न हुआ वावल़े गांव का ऊँट हो गया. पहले, बैंक वाले केवल तथाकथित उत्पादक गतिविधियों के लिए ही ऋण देते थे. पर, आज इन्हें बस इतना पता तो लग जाए कि आप लोन लेना चाहते हैं, उसके बाद आप ठीक इसी तरह छुपते फिरोगे जैसे लोन लेने के बाद लोग इनके वसूली-मुश्टंडों से लुके फिरते हैं.
कुछ लोग महज इसलिए बहुत परेशान हैं कि भई गाड़ियां बहुत बिक रही हैं. लेकिन, रोज़ इतनी गाड़ियां बिकती देख मुझे कोई खास चिता नहीं होती क्योंकि मैं अपने अपार्टमेंट्स में देखता हूं कि यहां 60 फ़्लैट हैं लेकिन कारें है 80-90. इन में से 10-15 कारें ही रोज़ सड़क पर निकती हैं. बाकी कारें "संडे वाले अंकलों" की कारें हैं जो इन्हें केवल छुट्टी के दिन चलाते हैं. या बहुत हुआ तो गाहे-बगाहे रिक्शे का किराया बचाने के लिए कार चला आए. किसी शादी-वादी में जाने की जुगत भिड़ गयी तो कार के दिन भी फिर जाते हैं, ऐसे में कार-सेवा (गुरूद्वारे की कार सेवा से कन्फ़्यूज़ न करें)एक-आध दिन पहले ही शुरू हो जाती है. और फिर, पर्यावरणवादियों को अंगूठा दिखाते हुए धुंए और शोर के बीच 10-20 किलोमीटर प्रति घंटे की तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ सड़क के ठीक बीचोबीच हवा से बातें करने लगती है.
-काजल कुमार |
आज तो बस ऐसे ही है
जवाब देंहटाएंमंहगाई के दौर मे कितनों की कार सड़क पर निकलती है,यह तो वही जाने पर सही लिखा आपने
बिल्कुल सत्यता दिखाई पड़ती है,
आज कल बड़े बड़े शहरों मे दिखवा बहुत ही ज़्यादा है,जैसे आपके संडे वेल अंकल जी..
बहुत बढ़िया काजल जी
बधाई...
आज कल तो जितने बेकार थे वो भी कारों मैं आ गए हैं! और जो बेकार बचे है वो जुगत लगा के ले ली लेंगे !! जैसे की हम भी बेकार हैं !!
जवाब देंहटाएंdekha ekhi ka jamana hai.narayan narayan
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा आप ने,हम ने ऎसे लोग भी देखे है, जिन के पास आमदन तो है नही, लेकिन कार है मां बाप के पेसो से, या फ़िर कर्जे से, एक जमाना था लोग कर्जा नही लेते थे, मजबुरी मै ले लेलिय तो जब तक कर्ज चुका नही देते चेन से नही सोते थे, ओर आज ...? उस से उलटा हो रहा है
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा है. आजकल कार का न होना खबर बनती है
जवाब देंहटाएंdahej ki car ,khoob fabte ho yaar
जवाब देंहटाएंparpetrol keliye,kyoon chori yaar .
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भई स्टेटस भी तो कोई चीज होती है ना!!!
जवाब देंहटाएंकार ही कार नजर आ रही है सरकार ,
जवाब देंहटाएंबेकार हो कार या
मजेदार हो कार ,
पर सब को हवा से जमीं पर ला गई है पंचर कार
मेट्रो का भला हो.. हमारी कार तो पार्कींग की शोभा बढ़ाती है..:)
जवाब देंहटाएंआपने तो हमें भी आईना दिखा दिया :(
जवाब देंहटाएंKayee baar aise aalekh padhtee hun, to stabdh ho jaatee hun..kyon ham kisee kee dekha dekhee chand cheezen/hatkaten karne pe majboor ho jaayen?
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansmaran.blogspot.com
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काजल जी आपने तो खुली आंखें भी बंद कर दी हैं अपने इस आलेख से।
जवाब देंहटाएंकार का होना सरकार से जुड़ने का एक अद्भुत अहसास कराता है
बेकार भी सरकार हो जाता है
यह महसूस होता है कि अकेले ऑटो, बस वालों, सिगरेट पीने वालों का ही एकाधिकार नहीं है पर्यावरण को प्रदूषित करने में।
वैसे एक सलाह है संडे कार स्वामियों के लिए यदि वे चाहते हैं कि अपनी कार का रोजाना सदुपयोग कर सकें तो कार में एक बार जी कड़ा करके थोड़ी सी जेब और ढीली करके उसमें सीएनजी किट लगवा लें और कार की साकारिता का संपूर्ण आनंद लें।
जहां सीएनजी की सुविधा नहीं है, वे अभी प्रतीक्षा करें।
जल्दी ही कार का हवा से चलना शुरू करवाईए काजल जी...फिर देखना कि हवा से कारें कैसे बात करती हैँ?...
जवाब देंहटाएंफिलहाल तो ससुरा ई पैट्रोल इत्ता मँहगा है कि......