आदर्शवादी सास की बहू


‘टी वी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, स्‍कूटर,
क्‍या करूंगी ये सब लेकर,
बस एक अच्‍छी सी बहू चाहिए
और भला मुझे क्‍या चाहिए।
ऐसी बहू जो हर वक्‍त करती रहे बडों की सेवा,
और कभी उम्‍मीद न करे कि मिले किसी से मेवा।‘
बोली मां संपन्‍न घराने में बेटे का विवाह तय कर,
और फिर चल दी,
मित्रमंडली में अपनी आदर्शवादिता की छाप छोडकर।
पर दिल में काफी इच्‍छाएं थी,
काफी अरमान थे,
हर समय सपने में बहू के दहेज में मिले
ढेर सारे सामान थे।
और जब बहू घर आयी,
उनकी खुशी का ठिकाना न था,
हर चीज साथ लेकर आयी थी,
उसके पास कौन सा खजाना न था।
हर तरफ दहेज का सामान फैला पडा था,
पर सास का ध्‍यान कहीं और अडा था।
बहू ने बगल में जो पोटली दबा रखी थी ,
इस कारण उनकी निगाह इधर उधर नहीं हो पा रही थी।
न जाने क्‍या हो इसमें ,
सोंच सोंच कर परेशान थी,
बहू ने अब तक बताया नहीं ,
यह सोंचकर हैरान थी।
हो सकता है सुंदर चंद्रहार,
जो हो मां का विशेष उप‍हार,
या हो कोई पर्सनल चीज,
या फिर किसी महंगी कार के एडवांस पैसे ,
शायद मां ने दिए हो इसे।
पर खुद से अलग नहीं करती,
इसमें अंटके हो प्राण जैसे।
काफी देर तक सास अपना दिमाग दौडाती रही,
और मन ही मन बडबडाती रही।
कैसी बहू है ,
सास से भी घुल मिल नहीं पा रही,
अपनी पोटली थमाकर बाथरूम तक नहीं जा रही।
बहुत हिम्‍मत कर करीब जाकर प्‍यार से बोली,
बहू से बहुत मीठे स्‍वर में अपनी बात खोली।
^इसमें क्‍या है^ , मेरी राजदुलारी,
इसे दबाए दबाए तो थक जाओगी प्‍यारी।
बहू भी काफी शांत एवं गंभीर स्‍वर में बोली,
आदर्शवादी सास के समक्ष पहली बार अपना मुंह खोली।
’सुना है ससुरालवाले दहेज के लिए सताते हैं,
ये लाओ, वो लाओ मायके से ये हमेशा बताते हैं।
जो मेरे साथ ऐसा बर्ताव करने की कोशिश करेगा,
वही मुझसे यह खास सबक लेगा।
उसके सामने मैं अपनी यह पोटली खोलूंगी,
इसमें रखे मूंग को उसकी छाती पर दलूंगी।‘

( लेखिका - श्रीमती शालिनी खन्‍ना )

10 टिप्‍पणियां:

  1. लेखिका जी को बहुत-बहुत धन्यवाद । साथ ही संगीता जी आपको भी , समाज में आज भी दहेज का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है । जिसका वर्तमान में कोई हल नहीं दिखता । कितना कुछ भी मिल जाये पर संतुष्टी नहीं है। अच्छा व्यंग्य किया है ।

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  2. bahut achhi rachana,sahi dehez pratha band honi chahiye.

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  3. bahut sahi dhang se aapne is samasya ko uthaya hai.
    aapki lekhni ko salaam............isi tarah sabko prayas karna hoga ek swasth samaj ke nirman mein .

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  4. बहुत सही लिखा है।
    घुघूती बासूती

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  5. लेखिका और संगीता जी दोनो को बहुत-बहुत धन्यवाद । सही हसरतो को आपने बयां किया है । आज भी हमारे दकियानूसी समाज की सोच दहेज है जो किसी भी तरह से लेना चाहता है भले ही इसके लिए कुछ करना पड़े । पर लोगो को सुनाने के लिए कहते है कि मै कुछ नही लेनेवाला। आभार

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  6. It great to explain about our conservative society .who only works for dowry.but it is harming society

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  7. बहुत अच्छा लिखा गया है ....दहेज़ लोभियों की सच्चाई बयाँ कर दी ...


    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  8. ha ha ha ha ha kya baat he bahut hi badiya likha he ji maza aagaya
    aapne bhi yahi funda apnaya he kya ....
    bura mat manna par bahut maze daar he :)

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  9. कभी किसी बहू ने नहीं सताया है आप को ,
    इस लिए आप ये लिख पाए है ,
    ४९८ अ माय जिस दिन झूठे फश जोगे ,
    सारी कविता लिखना भूल जाओगे,
    फिर बताओगे दहेज़ पर लिखू या बहू के अत्याचार पर लिखू .......

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