मेरे कमरे की खिड़की
से
झाकती है रोशनी
प्रकाशमय करती है
मेरे जीवन को
हर रोज,
आती है चुपके से
बिना आहट दिये
दस्तक देती है
मेरी चौखट पर,
खुलती है आखें
उजली किरण के साथ
चका-चौंध
दुनिया में
मिलता है
इसका साथ
उठता हूँ
देखता हूँ
नित्य ही
उस खिड़की से
बाहर,
एक खामोश ,
सुहानी सुबह को
चिड़ियों की
चह चहाहट को
आते जाते
लोगों को,
शुकून मिलता है
ताजगी मिलती है,
ठंड हवा के
झोंकों से,
होती है
दिन की शुरूआत
कुछ ऐसे ही।
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अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंआजकल फ्लैटनुमा कमरों में
जवाब देंहटाएंन तो चिडि़या है
न चहचहाहट उसकी
न सूरज की रोशनी
और सुबह की ठंडी हवा
पी लेते हैं रात को ही
बहुत से लोग इतनी दवा
कि सुबह सवेरे नींद नहीं खुलती
नींद नहीं खुलती तो
नहीं खुलती खिड़की भी
जिसके न खुलने से
न तो आती है रोशनी
न चिडि़यां और न चहचहाहट
और जिनकी खिड़कियां खुलती हैं
सुबह सवेरे जग जाते हैं जो
वे भी कहां किरणें पाते हैं
क्योंकि उनकी खिड़की पूरब की तरफ
पश्चिम की तरफ, न उत्तर और न
दक्षिण की तरफ होती है
तब तो आप पूछेंगे अवश्य
कि खिड़की होती भी है
तो मेरे मित्र खिड़की तो होती है
पर उस खिड़की के आगे
खड़ी दीवार होती है
और उपर छत
इससे आगे टिप्पणी बस।
bahut sundar panktiya hain...
जवाब देंहटाएंyahaa bhi tashreef layiye fursat mein..
http://merastitva.blogspot.com
सुन्दर...सरल भावों को अपने में समेटे हुए एक बढिया कविता...
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहें?...
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना है।
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