“नुक्कड़” पर मिलने वाले अपने सभी साथी मित्रों के साथ साझा करना चाहता हूँ अपने ये कवितामयी विचार। जानता हूँ, आप भी ऐसा ही सोचते होंगे और यह विश्वास भी है कि एक बेहतर दुनिया के लिए, थोड़ी-सी बची अच्छी चीजों को नि:संदेह हम-आप बचाना चाहेंगे…
कविता
शुक्र है…
शुक्र है-
निरन्तर बढ़ रहे इस विषाक्त वातावरण में
बची हुई है, थोड़ी-सी प्राणवायु।
शुक्र है-
कागज और प्लास्टिक की संस्कृति में
बचा रखी है फूलों ने अपनी सुगन्धि
पेड़ों ने नहीं छोड़ी अपनी ज़मीन
नहीं छोड़ा अपना धर्म
स्वार्थ में डूबी इस दुनिया में।
बेईमान और भ्रष्ट लोगों की भीड़ में
शुक्र है-
बचा हुआ है थोड़ा-सा ईमान
थोड़ी-सी सच्चाई
थोड़ी-सी नेकदिली।
शुक्र और राहत की बात है
इस युद्धप्रेमी और तानाशाही समय में
बची हुई है थोड़ी-सी शांति
बचा हुआ है थोड़ा-सा प्रेम
और
अंधेरों की भयंकर साजिशों के बावजूद
प्रकाश अभी जिन्दा है।
एक बेहतर दुनिया के लिए
थोड़ी-सी बची इन अच्छी चीजों को
बचाना है हमें-तुम्हें मिलकर
भले ही हम हैं थोड़े –से लोग !
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वाह ! वाह ! वाह !
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर विचार और अतिसुन्दर अभिव्यक्ति ! निश्चय ही अनुकरणीय है......इसी में जग का हित है..
हम थोड़े नहीं है
जवाब देंहटाएंहम 10000 हैं
अभी और बनेंगे
जो हिन्दी ब्लॉग हैं
दस हजार से
दस करोड़ की ओर
तेजी से बढ़ता सफर
10000 में से 2 हजार
भी ईमानदार हैं तो
10 करोड़ में से कितने होंगे
कम जरूर हैं
पर कभी इतने कम न होंगे
चाहे कम भी हों पर
कमी के गम न होंगे।
तानाशाह नहीं हैं तो क्या
युद्धप्रेमी हैं तो क्या
पार्किंग को लेकर ही तो
तानाशाह हैं और इसे लेकर ही
युद्ध करते हैं।
एक बेहतर पार्किंग के लिए
ही तो लड़ रहे हैं हम
दूसरों की बेईमानी के आगे
अपनी ईमानदारी पार्क कर रहे हैं हम
हम हम हैं हमसे जमाने में दम है
ईमानदारी नहीं किसी से कम है।
सत वचन .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंshukra hai kisi ne to socha ,
जवाब देंहटाएंek pahal to ki
apni sanskriti ko bachana hai
yeh koi ahsaan nhi hai
yeh to khud ko bachana hai
bahut badhiya abhivyakti
उस थोड़ी -सी बची दुनिया में कविता ज़िन्दा है! बहुत भावपूर्ण विचार।
जवाब देंहटाएंघूमते-घुमाते "नुक्कड़" पर पहुँचने वाले को अगर नुक्कड़ पर पाँच-छह मित्र भी मिल जाएं तो नुक्कड़-मिलन सार्थक हो जाता है। मेरी कविता "एक बेहतर दुनिया के लिए…" के बहाने इस नुक्कड़ पर मिल बैठने और बात करने के लिए रंजना जी, अविनाश भाई, राजीव तनेजा, परमजीत बाली, सुशील कुमार जी और वन्दना जी का शुकिया। फिर मिलेंगे इसी नुक्कड़ पर अपनी अथवा अपने मित्र साथी की किसी रचना के बहाने।
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