प्यार का खुमार फिजाओं में छाया है,
इन हवाओं ने गीत गुनगुनाया है ,
है महक तेरी बसंत में,
जैसे गुलाब ने भैरों को बुलाया है।
गगन के उडते पंछी ,
बाग में कोयल की कूंकें,
घास पर ओस की बूदें,
चांद की चांदनी में,
आम के बौंर की महक,
लहलहाते खेतों में,
सूरज की पहली किरण,
और
साथ तेरे टहलते हुए,
प्रकृति की छटा ,
का नूर तेरे नूर से ,
न जाने क्यों शर्माया है ।
क्या बंसत का खुमार ही,
हम दोनों पर उतर आया है ।
प्यार का खुमार..........फिजाओं में छाया है ।
इन हवाओं ने गीत गुनगुनाया है ,
है महक तेरी बसंत में,
जैसे गुलाब ने भैरों को बुलाया है।
गगन के उडते पंछी ,
बाग में कोयल की कूंकें,
घास पर ओस की बूदें,
चांद की चांदनी में,
आम के बौंर की महक,
लहलहाते खेतों में,
सूरज की पहली किरण,
और
साथ तेरे टहलते हुए,
प्रकृति की छटा ,
का नूर तेरे नूर से ,
न जाने क्यों शर्माया है ।
क्या बंसत का खुमार ही,
हम दोनों पर उतर आया है ।
प्यार का खुमार..........फिजाओं में छाया है ।
सुन्दर कविता - नीशू की हमेशा की तरह.
जवाब देंहटाएंवाहवा !!!!!! बहुत बहुत सुंदर प्रवाहमयी गीत !!
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंवर्तनी की अशुद्धियां अखर रही हैं
जवाब देंहटाएंभैंरों और भौंरे में बहुत अंतर है
फिर भी बेहतर प्रयास है
hamen bhi ikraar hai
जवाब देंहटाएंaapne kavita ke gulshan ko mehkaaya hai.