प्यार का खुमार..........फिजाओं में छाया है

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  • प्यार का खुमार फिजाओं में छाया है,
    इन हवाओं ने गीत गुनगुनाया है ,
    है महक तेरी बसंत में,
    जैसे गुलाब ने भैरों को बुलाया है।
    गगन के उडते पंछी ,
    बाग में कोयल की कूंकें,
    घास पर ओस की बूदें,
    चांद की चांदनी में,
    आम के बौंर की महक,
    लहलहाते खेतों में,
    सूरज की पहली किरण,
    और
    साथ तेरे टहलते हुए,
    प्रकृति की छटा ,
    का नूर तेरे नूर से ,
    न जाने क्यों शर्माया है ।
    क्या बंसत का खुमार ही,
    हम दोनों पर उतर आया है ।
    प्यार का खुमार..........फिजाओं में छाया है ।

    5 टिप्‍पणियां:

    1. सुन्दर कविता - नीशू की हमेशा की तरह.

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    2. वाहवा !!!!!! बहुत बहुत सुंदर प्रवाहमयी गीत !!

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    3. वर्तनी की अशुद्धियां अखर रही हैं

      भैंरों और भौंरे में बहुत अंतर है

      फिर भी बेहतर प्रयास है

      जवाब देंहटाएं
    4. hamen bhi ikraar hai
      aapne kavita ke gulshan ko mehkaaya hai.

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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