कचनार
अभिव्यक्ति के 5 मई 2008 के नवीनतम अंक में अपने लीक से हटकर संपादकीयों के लिए ख्यातिप्राप्त माननीया पूर्णिमा वर्मन जी ने कचनार विशेषांक प्रकाशित करने की घोषणा की है। इस पर उन्होंने जो रचनाएं मांगी है, उनकी अंतिम तिथि जानने के लिए कलम गही नहिं हाथ ज्यों का त्यों सादर उद्धृत किया जा रहा है -
कलम गही नहिं हाथ
कच्ची कली कचनार की यह एक कहावत है, गाना है और अनुप्रास अलंकार का उदाहरण भी। कचनार की कली को कोमल सौंदर्य का प्रतीक समझा जाता है। संस्कृत में इसे कोविदार कहते है। कालिदास इसके सौंदर्य का वर्णन करते हुए ऋतुसंहार में कहते हैं- चित्तं विदारयति कस्य न कोविदारः यानी ऐसा कौन है जिसके मन को कोविदार का सौंदर्य विचलित न कर दे। जिन्होंने कचनार का फूल देखा है वे लोग कालिदास के इस विचार से ज़रूर सहमत होंगे। मराठी में आज भी इसका नाम कोविदार ही है। हिंदी तक आते आते कोविदार कचनार कैसे बन गया यह खोज का विषय हो सकता है, पर इसको खोजे कौन? कंकरीट के जंगलों में पैसे की दौड़ में खोए कितने लोग होंगे जो अपने बगीचे के पौधों के नाम जानते होंगे? अपनी सड़क पर खिलते वृक्षों को पहचानते होंगे? ईश्वर ने हमें मुफ़्त की हवा दी है साँस लेने के लिए, प्रकृति का सौंदर्य दिया हैं मन को प्रफुल्लित करने के लिए पर हम मुफ़्त की चीज़ों की क़द्र करना भूल गए हैं। इन भूली हुई यादों को ताज़ा करने के क्रम में हम पिछले दो सालों से सुंदर फूलों वाले वृक्षों के विशेषांक निकालते आए हैं। २००६ में गुलमोहर विशेषांक और २००७ में अमलतास विशेषांक के बाद इस क्रम में इस वर्ष बारी है कचनार की। आपकी रचनाएँ सादर आमंत्रित हैं। रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि ३१ मई है। --पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
कच्ची कली कचनार की
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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बहुत सुंदर विचार अभिव्यक्ति आभार
जवाब देंहटाएंअविनाश जी आप लिखते बढिया हैं। मेरा ई मेल है statejharkhand@gmail.com OR crimediary12@gmail.com
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
nice blog blog kaise banaye
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