इस जग में
किसी को तो
मिलती है शांति
सिर्फ फोन में
और किसी की चाहना
है न हो फोन
न बजे टोन
तो आएगी पास
शांति ओम शांति ओम
पर नेट तो है मित्र
उसी से खींचे जाओ
ख्यालों के चित्र
करना चाहो बात
तो कान पकड़वा लो
सिर के फोन से
कान अपने आप
फूटने लग जायेंगे
फिर नहीं मिलेगी
शांति ओम शांति
तुम ढूंढोगे भी नहीं
वैसे अब इसे पढ़
रहे हो बड़े चाव से
खा रहे हो समझो पाव
अब चाय से
पर चाय के साथ
सिर्फ मठरी में ही
आता स्वाद है
पर तुम्हें तो
चाय के साथ पाव
खाने का चाव है
जिसे जिसमें मिले
सिर्फ सोने में ही नहीं
जगने पर भी दिखते हैं ख्वाब
वे भी तो होते हैं लाजवाब
अब है कोई जवाब
वैसे ना जवाब भी
जवाब का ही एक
नया रूप है
शैली है.
खो गया है फोन
तो कोई बात नहीं
जीवन की धुन सदा
बजती रहनी चाहिए
फोन तो और
खरीदा जा सकता है
और काटो मत मित्र
नंबर को
नंबर कायम रहेगा
सिर्फ चाहत चाहिए
उसे रखने की
न कि उससे बचने की
एक एफ आई आर
लिखाओ और वापिस
अपना वाला
जो भरपूर तंग करता है
जो संग चलता है
वही नंबर पाओ
जाकर सिम ले आओ.
यूं ही बहाने न बनाओ
अब हम और नहीं लिखेंगे
आप इतना ही पढ़ लें
हम आज शुक्र (वार) मना रहे हैं.
खो दिया है फोन सचिन लुधियानवी ने
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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कविता,
फोन,
साहिर लुधियानवी
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शांति ओम शांति ओम...बढ़िया बढ़िया शब्द जाल बुना है|
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें। यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...