कितना ही सावधान कर दो
मजदूर बनने की मजबूरी कायम रहेगी
मजे के लिए कोई मजबूर नहीं होता
मजे से हर मजदूर दूर होता है
कितना ही भाजन कर लो
विभाजन कर लो
जन जन भा ...रत का मजदूर है
मजदूर ही रहेगा
सदा मजबूर ही सहेगा।
सारे लेखक सलीम खान नहीं होते! निर्मल-आनन्द पर एक टिप्पणी
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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लिखा तो आपने बिलकुल सत्य है।
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