कवि श्रोता हैं
ठीक है, पर
सरोता न बनें।
श्रोताओं में
कवि भी मिलेंगे
उनके ओंठ भी
जरूर खुलेंगे।
कविता न सही
वाह वाह
अधिक करेंगे
हम उसे ही
कविता समझेंगे।
कविता में तो
कवि को मजा
नहीं आता है
वो तो वाह वाह
सुनना चाहता है।
हवा में गोते
लगाता है
मंडराता है
सुनाता है
भरमाता है
पसंद आता है।
मन पखेरू फ़िर उड़ चला पर एक टिप्पणी
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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आपकी चाहना जायज है।
जवाब देंहटाएंअरे अविनाश जी यह क्या देख रही हूँ मै? आज अचानक यहाँ पहुँच गई आपने हमे भी अपने व्यंग्य में लपेट लिया... वाह बहुत अच्छे भैया जी!!
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