जलते जलते मुझे यूं ख्याल आया है
कि मुझे खड़े करके इंसान ने क्यूं जलाया है
या समझ रहा इंसान है
कि जिंदा हूं मैं राम के बिना
जबकि राम ने मुझे मारा है
जमाना जानता है सारा
और मानता भी है
या जी रहा है मुगालते में भारी
रावण जिंदा को बांध कर लाया है
इसलिए खड़ा करके जलाया है

बना रहा है
बेच रहा है
पुतले मेरे
जला रहा है
जला जा रहा है
सोच लगती है
सच इंसान की
इसलिए वो जलाकर मुझे
घर पहुंचकर नहीं नहाया है
वैसे उसने मुझे शमशान में नहीं जलाया है
इसलिए भी लगता नहीं नहाया है
वैसे न मेरी हड्डियां अस्थियां बटोरने आएगा
करेगा नहीं तेरहवीं मेरी कोई
न क्रिया, न हरिद्वार में अस्थि विसर्जन
तो न नहाकर उसने किया तो लगता ठीक है
वैसे उस राम के होने पर भी
सवाल इंसान ने ही उठाया है
पर फिर भी मुझे जलाने में
इंसान को लुत्फ बहुत आया है
मेरा तमाशा खूब बनाया है
लेकिन मैं भी ढीठ हूं बहुत
जलूंगा नहीं अभी मैं
जलूंगा नहीं कभी मैं
रावण हूं रावण रहूंगा
ब्लू लाईन के चालकों के भेष
में राजधानी में रहूंगा मैं
तू नहीं नहाएगा तो
श्रीलंका नहीं मैं जाऊंगा ?