वात्‍सल्‍य निर्झर - कविता - अविनाश वाचस्‍पति

आपका प्रकाश एन जी ओ का प्रतीक चिन्‍ह
#‪#‎वात्‬‍सल्‍यनिर्झर
वायु चिकित्‍सा
एयर सर्जरी
संभव है
मेधा से
किए जाते हैं
सभी चमत्‍कार
समझते हैं हम
चमत्‍कार
पर न उसमें
चमक होती है
पर न होती है
उसमें कार
की चमकार
कार के मायने
जो समझते हैं
चौपहिया वाहन
पर करते हैं सवारी
जबकि कार का
जीवन कार्य
कारण या कारक
हाेना है
कारक वो जो सदा
सच्‍चे मन से किया जाए
सद्गुणों का अंबार लगाएं
अंबार लगाना
व्‍यापार सजाना
नोट कमाना
अपने उचित रूप में
सही कहलाता है
कारनामा
वही तो है
वात्‍सल्‍य निर्झर
जो पल पल झरता रहे
पुष्‍पों की तरह
महकता रहे
खुशबू की तरह
उड़ता रहे तितली की तरह
न कि पतझड़ की तरह
जबकि पतझड़ में
पत्‍तों का टूटकर
जमीन पर गिरना
नीचे सूखी-हरी घास पर
भी सकारात्‍मक है
पर काकरोचों की
किलमिलाहट चीख पुकार
गूंज में कैसे करोगे
सकारात्‍मकता का आवाह्न।
--- अविनाश वाचस्‍पति
9560981946

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-12-2015) को "जीवन घट रीत चला" (चर्चा अंक-2196) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

आपके आने के लिए धन्यवाद
लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

 
Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz