##Fever
बुखार ने बोल दिया हमला कल रात
बुखार ने मेरे कमजोर शरीर से की बात
बुखार ने भी दिखलाई कल मेरे शरीर पर अपनी औकात
मौका देख पत्नी और पुत्र भी हावी हो गए मुझ पर
करते नहीं हो आराम इसलिए हुए हैं तुम्हारे यह हालात
बुखार ने मौका देख कर मारी है तुम्हारे लात
आराम कराे आराम करो
फिर कुछ करना काम
कुछ बरसों बात
वैसे हम तुम्हारी उम्र बीत गई है
पड़े रहा करो बिस्तर पर
खाओ दवाई और करो रूलाई
अब काम करने की कोशिश करोगे
तो मर जाओगे
लिखने के लिए कलम उठाओगे
तो ढह जाओगे
मन तुम्हारा तुम्हें लगता जवान है
सोचते हो तुमसे बड़ा नहीं कोई पहलवान है
शरीर में जान नहीं
फिर भी गुर्राते हो
हमें काटने के लिए आगे बढ़ आते हो
ईश्वर देख रहा है तुम्हारी अठखेलियां
मस्तियां, रो रहो हो तुम भर भर कर
हिचकियां
सोच रहे हो झूले खा रहे हो
पर तुूम तो मरने की डगर पर
दौड़े जा रहे हो
हम रोकते हैं तुम्हें
पर तुम रुकते नहीं हो
किसी के आगे तनिक झुकते नहीं हो
भारत के तिरंगे झंडे नहीं हो
हवा नहीं मिलेगी तो नहीं लहराओगे
हवा चलेगी तो नया जीवन पाओगे
हमें तो लगता है किसी दिन
फड़फड़ाते हुए परिंदे की तरह उड़ जाओगे
कैद तुम्हें यमराज करेगा
भला वह तुमसे क्यों डरेगा
बड़ी डींगे हांकते हो
लिखने वाले का क्या हश्र होता है जमाने में
क्या तुम नहीं जानते हो
फिर खुद को कलम का पहलवान क्यों मानते हो।
बुखार ने बोल दिया हमला कल रात
बुखार ने मेरे कमजोर शरीर से की बात
बुखार ने भी दिखलाई कल मेरे शरीर पर अपनी औकात
मौका देख पत्नी और पुत्र भी हावी हो गए मुझ पर
करते नहीं हो आराम इसलिए हुए हैं तुम्हारे यह हालात
बुखार ने मौका देख कर मारी है तुम्हारे लात
आराम कराे आराम करो
फिर कुछ करना काम
कुछ बरसों बात
वैसे हम तुम्हारी उम्र बीत गई है
पड़े रहा करो बिस्तर पर
खाओ दवाई और करो रूलाई
अब काम करने की कोशिश करोगे
तो मर जाओगे
लिखने के लिए कलम उठाओगे
तो ढह जाओगे
मन तुम्हारा तुम्हें लगता जवान है
सोचते हो तुमसे बड़ा नहीं कोई पहलवान है
शरीर में जान नहीं
फिर भी गुर्राते हो
हमें काटने के लिए आगे बढ़ आते हो
ईश्वर देख रहा है तुम्हारी अठखेलियां
मस्तियां, रो रहो हो तुम भर भर कर
हिचकियां
सोच रहे हो झूले खा रहे हो
पर तुूम तो मरने की डगर पर
दौड़े जा रहे हो
हम रोकते हैं तुम्हें
पर तुम रुकते नहीं हो
किसी के आगे तनिक झुकते नहीं हो
भारत के तिरंगे झंडे नहीं हो
हवा नहीं मिलेगी तो नहीं लहराओगे
हवा चलेगी तो नया जीवन पाओगे
हमें तो लगता है किसी दिन
फड़फड़ाते हुए परिंदे की तरह उड़ जाओगे
कैद तुम्हें यमराज करेगा
भला वह तुमसे क्यों डरेगा
बड़ी डींगे हांकते हो
लिखने वाले का क्या हश्र होता है जमाने में
क्या तुम नहीं जानते हो
फिर खुद को कलम का पहलवान क्यों मानते हो।
- अविनाश वाचस्पति, साहित्यकार सदन,195,पहली मंजिल, सन्त नगर, ईस्ट ऑफ कैलाश, नई दिल्ली 110065 मोबाइल 08750321868/09560981946
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