प्रिय मित्र नहीं रहे। एकदम अविश्वसनीय। अभी 30
बरस पहले उनकी कविताओं का पहला संग्रह "उगता अंकुर" आया और कविताओं का नया हालिया
कविता सग्रह "चिमनी पर टंगा चा्द"। विश्वास नहीं हो रहा है कि "चांद चिमनी पर
टंगा" रहेगा। भाई सुरेश यादव यूं सहसा साहित्यिक जगत से दूर जाएंगे
अपनी
ईमानदारी, कर्मठता, जुझारूपन और जुननी तथा अपनी लगन के धनी, जिनका जीवन वही रहा,
संवेदनशील होकर लिखी कविताएं भुलाए नहीं भूली जा सकेंगी और बार-बार उनकी याद
दिलाएंगी।
"उनके प्रशंसक मित्रों में भाई सुभ...ाष नीरव, उनकी
कविताओं के असंख्य दीवाने और मैं ताउम्र भुला नहीं सकेंगे। उनसे जुड़्ी तमाम यादें
बारंबार कचोटेंगी।" पिछले सप्ताह उनका मेरे आवास पर आना। मेरी मुंबई से 30
दिसम्बर 2014 की वापसी पर सुबह उनसे फोन पर बतियाना और उनका यह कहना कि अभी वह एक
आवश्यक मीटिंग में जा रहे हैं क्योकि उन्हें देरी पसंद नहीं थी। फिर फोन न आना
और एकाएक उनके जाने की हृदय विदारक खबर पढ़कर मन खिन्न है परंतु नियति की नीयत पर
संदेह नहीं किया जा सकता है। इसलिए सब स्वीकार है। इतनी यादें हैं उनसे जुड़्री कि
पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है और लिखूंगा लगातार। हर बार नया जो उनके व्यक्तित्व
की परतें खोलता है। इसी विश्वास के साथ .... हर बार लगातार।
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