‘दहशत अंकल’, हाँ यही तो
कहा था पेशावर में स्कूली बच्चों के नरसंहार के बाद उस दस साल की मासूम बच्ची ने दहशतगर्दों
के लिए क्योंकि उसे तो बचपन से यही सिखाया गया है कि अपने पिता की उम्र के सभी
पुरुषों को अंकल जैसे सम्मानजनक संबोधन के साथ पुकारना है और दहशत शब्द उसके लिए
शायद नया नहीं होगा.पकिस्तान में आए दिन होने वाले धमाकों और फायरिंग के बाद
अख़बारों से लेकर न्यूज़ चैनलों में दहशतगर्द शब्द दिनभर गूंजता रहता है इसीलिए उसने
अनुमान लगा लिया कि यह कारनामा करने वाले दहशतगर्द ही होंगे. पारिवारिक संस्कारों
के कारण उसने अनजाने में ही एक नया शब्द ‘दहशत अंकल’ गढ़ दिया यानि खौफ़ के साथ
प्रेम और सम्मान का अदभुत समन्वय. ‘दहशत अंकल’ शब्द ने मुझे सत्तर
के दशक की
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कम से कम मासूम बच्चों पर दया आ जाए या गोली चलाने के पहले हाथ कांपने लगे?
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