कायमचूर्ण, कयामत और यमराज - अविनाश वाचस्‍पति


आजकल की राजनीति कायमचूर्ण हो गई है जिससे वह हमारे सहयोग से वह कंकड़ पत्‍थर सब हजम कर लेती है जिस तरह कायम चूर्ण गर्म दूध या गुनगुने पानी के साथ लिया जाए तो बेहतर रहता है। कायमचूर्ण के प्रयोग से छोटी आंतें साफ हो जाती हैं जिससे डायबिटीज का खतरा पनप नहीं पाता है।
बरअक्‍स इसके वह सब हजम तो कर जाती है जिससे नोट, वोट, चोट, खोट, सोट इत्‍यादि मतलब वह सब जो यम के आने की आहट होती है। यम मौत का प्रतीक है आजकल कायमचूर्ण कई वैराटियों में बनने लगा है जिससे स्‍वाद लाजवाब रहे।अगर यम दूर न हो तो कयामत आ जाती है। कयामत का आना न नेता को और न वोटर को पसंद है। पसंदीदा कायमचूर्ण हो तो पौष्टिकता भी कायम रहती है। पर यम की मजबूरी है कि ‘देर आयद दुरुस्‍त आयद’ ऐसे ही करके वह यमलोक की नौकरी पर बना तो रहता है। बिना शिकार किए जाएगा तो उसकी नौकरी पर खतरा है, उसकी नौकरी जा भी सकती है।
यमराज को भी मौत का डर सता रहा है, सुनने-पढ़ने में बात हैरानी की है, पर सच्‍चाई यही है, जिसे यमराज भी जानता-समझता है, पर वह और क्‍या कर सकता है। संसार के अजीब रहस्‍यों में इसका शामिल होना, मतलब यह है कि सूचना क्रांति के तकनीकी दौर में कुछ भी हो सकता है, वही हो रहा है जिसपर भरोसा करना, भरोसे को लहूलुहान करना है। वैसे आज वह सब हो रहा है जिस पर आसानी से विश्‍वास नहीं होता है। अब मोबाइल फोन की ही बात करें कि वह इतना स्‍मार्ट हो गया है कि बाकी सब कुछ पीछे रह गया है। तकनीक का सफर अभी ऐसा लगता है कि बीते कल की बात है जब टाइपराईटर को धकिया कर, इलैक्‍ट्रानिक टाइपराइटर, टेलेक्‍स, फैक्‍स जैसी खूब सारी निर्जीव वस्‍तुओं के बाद मोबाइल फोन का आगमन हुआ, उस समय इस तकनीकी क्रांति की किसी ने कल्‍पना भी नहीं की थी, पर अब स्‍मार्ट फोन विस्मित करता है।
पर अब बदलाव की इस क्रांति पर हैरान होना अपनी मूर्खता जाहिर करने की तरह है, अगर आप इस सबसे चकाचौंध हो जाते हैं तब आपकी बुद्धि पर दाद देना एकदम से गलत है। आजकल के बच्‍चे जो तकनीकी की इस आंधी रूपी अंधी दौड़ में भाग रहे हैं, उनके पेरेंट गर्वमिश्रित बोली में कहते हैं कि उनका चाइल्‍ड जन्‍म लेते ही, मोबाइल गेम, टेबलेट, लैपटाप जैसी वस्‍तुओं का दीवाना है तो सबकी बांछें खिल-खुल जाती हैं। समाज में जिसे छूत का यह रोग नहीं लगा, उसका जीवन बेकार है। इस तकनीकी महामारी से जो पीडि़त नहीं हुआ, उसके जीने के कोई मायने ही नहीं है।
जबकि सोशल मीडिया का रोग ऐसा है जिससे अब बचने के उपाय खोजे जाने लगे हैं। 25 साल पुराना दोस्‍त या परिचित मिलने पर मिलने वाली खुशी को शब्‍दों में बयान नहीं किया जा सकता है। चाहे पहले उससे मित्रता कम, बैरभाव ज्‍यादा रहा हो, पर अब उससे मिलने को दोस्‍ती का भाव देकर बढ़ावा दिया जा रहा है। भाव भी ऐसा कि सारे हाव-भाव बढ़ जाते हैं। जबकि इसके कारण बैरभाव, लूटपाट, इंटरनेट पर ठगी की घटनाएं सामने आने लगी हैं। पर इनसे उलझना फिर सुलझना अच्‍छा लगता है।
आपके देखते-देखते ही भाजपा के मोदी, चाय बेचने के मामले को प्रचारित-प्रसारित करके पीएम बन गए हैं, वरना अब तक वह चाय ही बेचते रह जाते।   सोशल मीडिया की ताकत पर ही आप के अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, मनीष सिसौदिया, कुमार विश्‍वास ने अपने मुख्‍य आमदनी के धंधे को धकिया कर अपना अलग ही रुतबा-पहचान कायम की है। है किसी में हिम्‍मत कि इन्‍हें इसके कारण पब्लिक को नेतत्‍व करने की उनकी योग्‍यता पर उंगली उठा सके।
इस तकनीक ने फिल्‍मों को किस की किस्‍मत पर ला दिया है, कौन सी फिल्‍म आज ऐसी चल रही है जिसमें इस सोशल मीडिया की इस क्रांति से बचा जा सका हो। आज लाखों-करोड़ों का व्‍यापार इसके कारण अपार संसार में फैल चुका है। किस की किस्‍मत चिंगारी ज्‍वाला बनकर धधकेगी, इसके कयास भला कौन लगा सकता है। भाषा से लेकर दृश्‍यों तक आने वाले बदलावों को जरुरत बतलाया जा रहा है। जो सिनेमा के इस परिवर्तन से अछूता रह गया, उसने जीवन में कुछ हासिल नहीं किया। अपने बिग बी अमिताभ बच्‍चन ने कौन बनेगा करोड़पति के कई धारावाहिकों में नये प्रयोग करके अपनी कंपनी और डूबते कैरियर को बचाने में कामयाब हुए हैं, जिनमें उनके साथ सुदूर गांव के प्रतिभागियों ने अपनी विजय की जय-जयकार की, कई करोडपति बने।
ऐसा ही छोटे परदे पर सीरियल्स के जरिए हुआ, कितनों की किस्‍मत चमकी। कितने ही कॉमेडियन देखते-देखते अपना जलवा बिखेरने में कामयाब हुए, इसका तो अब अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
जब ऐसे में यम को जिंदा रहने के लिए भी अब वेट करना पड़ रहा है। मजबूरी जब इंसान से इंतजार करा देती है तो जाहिर है कि यम भी इंतजार करे। इंतजार करोगे तो कुछ नहीं मिलेगा कयामत के सिवाय। आखिर प्राणों का मोह तो यमराज के साथ भी जुड़ा हुआ है। वरना तो यमराज को भी कयामत तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता है। देखा है न सोशल मीडिया का चमत्‍कार, जिसे सब खुलकर नमस्‍कार कर रहे हैं और हैरान भी नहीं होते हैं। आपकी इस बारे में राय का इंतजार मुझे भी है, आपको नहीं है क्‍या ?
-    अविनाश वाचस्‍पति
-साहित्‍यकार सदन, 195 पहली मंजिल, सन्‍त नगर, ईस्‍ट ऑफ कैलाश के पास, नई दिल्‍ली 110065 फोन 01141707686/08750321868 ई मेल nukkadh@gmail.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-12-2014) को "आज बस इतना ही…" चर्चा मंच 1816 पर भी होगी।
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    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. wah sahi likha hai aapki lekhni bahut dhar dar hai
    badhai
    rachana

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