पागल आदमी
तुमने मुझे आदमी माना
सुकूं है मुझे
पागल ही सही
पर कुत्ता तो नहीं कहा
पागल कुत्ते से
डरते हैं सब
आदमी पागल हो
तो उसे ले जाते हैं
पागलखाने में पागलखिलाने
पागल खाना खिलाना
बराबर है
पान खाने अथवा खिलाने के
ऐसा मैंने कहा नहीं है
सुना है मैंने पर ऐसा ही।
हां, मैं पागल हूं
मुझे आज मालूम हुआ
कि आदमी भी हूं मैं
आदमी न होता तो
पागल कोई और होता
या आदमी कोई ओर
पागल होना, आदमी होना
पागल जानवर होने से
बेहतर है
यह मैं आज जान गया हूं।
मैं खुद हैरान हूं
कि इतना सब बीता मेरे साथ
पर मैं जानवर क्यों न हुआ
क्यों मुझमें इंसानियत जिंदा है
वह न होती तो
न जाने कब का
बन गया होता जानवर
पर मेरा माहौल ही
नहीं रहा जानवराना
नहीं चाहा कभी मैंने
कि रोग ऐसा लगे
कि बनूं मैं जानवर
या भीतर का जानवर जाग उठे
जानवरत्व सबके भीतर होता है
कोई उन्हें दफन कर देते हैं
कुछ उन्हें उजागर करके
फन फना उठते हैं
मैं फनफनाया नहीं
मैं बजबजाया नहीं
क्योंकि
मैं पागल आदमी हूं।
पागल जानवर नहीं
पागल पक्षी भी नहीं
उल्लू, कौआ, गिद्ध
न पक्षी, न जानवर
सिर्फ आदमी
आदमी पागल हो तो
सिर्फ इतना अंतर पड़ता है
कोई उसे पागल आदमी
कह देता है पूरी ताकत से
और अपना गुस्सा उबाल देता है
उड़ा देता है भाप बनाकर।
पर मैं न अपने पर
न अपने रोग पर
काबू रख रखा
और बेकाबू हुआ
बेकाबू हद दर्जे तक
सिर्फ उतना ही
कि सब तोड़ फोड़़ डालूं
खुद को फेंक दूं
चौथी मंजिल से
सीधे नीचे सड़क पर।
मुझे चिंता रही सबकी
मोह ममता में उलझा रहा
और मैं पागल हो गया
पागल वह अच्छा जो
रहे काबू में
गुस्सा उसे अधिक देर
अपनी गिरफ्त में
न गिरफ्तार रख सके।
मैं गिरफ्तार हुआ
कैदी तो तुम भी बने
पर तुम छोटी जेल के
मैं तिहाड़ का
तिहाड़ का कैदी
बनकर रह गया मैं
आजन्म सजा हुई मुझे
मैं रोग भुगत रहा हूं
तुम छोटे जेल के
छोटे कैदी
बाहर आ गए
पर मैं आ न सका
न ममता, न मोह की कैद से बाहर
न रोग से बाहर
कहा है किसी कवि ने
बाहर भीतर एक समाना
पर मैं ने बाहर से
और न भीतर से
एक बना रह सका
पर अनेक हुआ नहीं
नेक बना रहा।
इतनी तसल्ली काफी है
मेरे जीने के लिए
कि तुम छोटे हो
और मैं बढ़ा
नहीं बन सका पेड़
बढ़कर तो क्या हुआ
बढ़ा तो रहा मैं
बढ़ रहा हूं मैं
पेड़ की तरह न सही
पर पेड़ के तने की तरह
तन तो रहा हूं मैं
पत्तों के माफिक
रह न सका मुलायम।
मैं जो एक पागल हूं
सिर्फ पागल नहीं
पागल आदमी हूं।
- अविनाश वाचस्पति
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बढ़ रहा हूं मैं
जवाब देंहटाएंपेड़ की तरह न सही
पर पेड़ के तने की तरह
तन तो रहा हूं मैं
पत्तों के माफिक
रह न सका मुलायम।
मैं जो एक पागल हूं
सिर्फ पागल नहीं
पागल आदमी हूं।
नमस्ते शुक्रिया कवित जी।
जवाब देंहटाएंसभी मित्र परिवारों को आज संकष्टी पर्व की वधाई ! सुन्दर प्रस्तुतीक्र्ण !
जवाब देंहटाएंगजब हैं आप तो वाकई में :)
जवाब देंहटाएंपागल को अहसास है पागल होने का
जवाब देंहटाएंतो वह पागल कहाँ
हाँ उसे लगा कि वह आदमी भी है
तो यह कमाल है.
paglaa kahin ka ...pagalpan me bhi sayaani baaten ??
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