"Time to Transform" मोबाइल फोन की उन्‍नत तकनीक का युग है यह - अविनाश वाचस्‍पति

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  • मोबाइल फोन की उन्‍नत तकनीक का युग है यह

    -     अविनाश वाचस्‍पति

    बहुमुखी प्रतिभा के धनी सिर्फ इंसान ही नहीं होते हैं और न सिर्फ त्रेतायुग में देवता ही हुआ करते हैं। आजकल क‍लयुग है, मतलब मशीनों का युग और मशीनों ने इंसानों के जरिए तकनीक के जरिए अपना वर्चस्‍व कायम कर लिया है।
    तकनीक ने जितनी तेजी से प्रगति की है, यह इंसान की उद्यमशीलता का कमाल है। अपने मानस-मस्तिष्‍क और कौशल के बल पर इंसान ने कठिन-से-कठिन समस्‍याओं का हल तलाश लिया है। जीवन को उपादेय बनाने में तकनीक का जादू आज सबके सिर तो नहीं, पर हाथों में दिखाई दे रहा है। 
     
    यह जादुई कारनामा महंगा भी है और सस्‍ता भी। मतलब सबकी पहुंच में है। आज इस तकनीक की बदौलत इंसान ने विभिन्‍न मोर्चों पर सफलता हासिल की है। देश ही नहीं विदेश में इसके जरिए संपर्क करना सस्‍ता और सहज हो गया है।  
     
    याद है वो दिन जब टेलेक्‍स के जरिए संदेश भेजने के लिए घंटों लग जाया करते थे। इसके अतिरिक्‍त टेलीप्रिंटर से संदेश भेजना बहुत महंगा और श्रमसाध्‍य कार्य हुआ करता था। तभी देखते-देखते फैक्‍स मशीन का अवतरण हुआ और हमें यह उत्‍कंठा  थी  कि क्‍या इसके जरिए हिंदी में संदेश भेजा जा सकता है। यह फैक्‍स मशीन के द्वारा इसलिए संभव था क्‍योंकि इसमें  इमेज यानी चित्र भेजा जाता था। इसी दौरान टाइपराइटर से कुछ कदम आगे बढ़कर इलैक्‍ट्रानिक टाइपराइटर आया, पर वह अधिक दिन नहीं रहा क्‍योंकि उसके पीछे द्रुतगति से फैक्‍स मशीन आ गई और टेलेक्‍स और टेलीप्रिंटर की उपयोगिता लगभग खत्‍म सी हो गई। जिन कार्यालयों के पास बजट नहीं था,  वह अवश्‍य पीछे रहे परंतु बाकी सबने फैक्‍स मशीनें खरीद कर अपने कार्यों को विकास की ओर तेजी से गति दी। 

    फैक्‍स भी अधिक दिन नहीं ठहरा पर अन्‍य उपकरणों से अधिक दिन इसकी उपयोगिता बनी रही और अब भी इसका प्रयोग किया जाता है। जबकि टेलेक्‍स और टेलीप्रिंटर को औपचारिक तौर पर बंद कर दिया गया है। जहां पहले संदेश भेजना काफी दुष्‍कर और महंगी तकनीक थी, वह अब सस्ती और सहज हो गई थी। 

    इसी दौरान भारतवर्ष में डेस्‍कटाप कंप्‍यूटर का आगमन हुआ पर इससे सब हिंदी प्रेमियों को भय लगता था कि अरे; यह तो अंग्रेजी जानने वाले ही चला सकते हैं। जबकि इसमें सिर्फ आदेश अंग्रेजी के अक्षरों और शब्‍दों के समन्‍वयन से दिए जाते थे। ऐसी कोई अंग्रेजी में विशेष दक्षता की जरूरत नहीं थी। अंग्रेजी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाला भी इसका पूरा उपयोग कर सकता था। 

    धीरे-धीरे कार्यालयों में कंप्‍यूटर आना शुरू हो गया। इसमें अब तक की लगभग सारी तकनीकें समाहित थीं। पर आरंभ में इससे सिर्फ टाइपराइटर का काम ही लिया जाता रहा। इसकी जानकारी के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण की व्‍यवस्‍थाएं की गईं, कक्षाएं लगाई गईं। इसमें हार्डवेयर के साथ ही साफ्टवेयर का अनूठा संगम था।  हार्डवेयर  को छुआ जा सकता था परंतु साफ्टवेयर को सिर्फ महसूस किया जा सकता था। हार्डवेयर का निर्माण आसान और साफ्टवेयर का सबसे मुश्किल और महंगा। इसके संचालन के विशेष तकनीकी कौशल की जरूरत पड़ती थी।

    इसके बाद धूम मचाता रंग जमाता सबको लुभाता मोबाइल फोन आया। जिसमें तकनीक के क्षेत्र में झण्‍डे फहरा दिए। यह अब तक की सभी तकनीकों को अपने में समेटे हुए मात्र चार सौ या पांच सौ ग्राम का उपकरण था। इसमें बिना तार से कनेक्‍ट किए देश और विदेश में बात की जा सकती थी। मैसेज भेजे जा सकते थे। जबकि शुरूआत में यह मोबाइल फोन उपकरण न तो स्‍मार्ट था, न सस्‍ता और न आसानी से ऑपरेट ही किया जा सकता था। उस समय चंद हाथों में ही यह दिखाई देता था। इस पर फोन आने पर सुनने वाले को भी भुगतान करना पड़ता था। ऐसा लग रहा था कि यह तो विलासिता और दूसरों पर रौब झाड़ने के लिए बनाया गया है। परंतु चरण-दर-चरण विकास होते हुए इसकी कीमतें काफी घट गईं और इससे मिलने वाली सुविधाएं बढ़ती गईं। हालांकि इसका वजन काफी तेजी से गिरा। जिससे इसे लेकर साथ चलना मुसीबत नहीं रही। सुनने की काल पर व्‍यय होना बंद हो गया। इसको अपनाने में धन बड़ी बाधा रही। पर इसका सफर काफी उपयोगी व लुभावना रहा। 
     
    समस्‍त उन्‍नत तकनीकों को सबसे बड़ा पर आकार में छोटा और वजन में कम इसने विजयश्री प्राप्‍त की। इसने एक मंत्री से लेकर एक निम्‍न श्रेणी के कर्मचारी तक पहुंच बना ली। खास से आम तक के इस सफर में इसके अनेक स्‍वरूप बदलते रहे और नेक होते रहे।

    सबसे बढ़कर इसके जरिए हरेक तरह के संदेश भेजना सरल हो गया, इसमें रेडियो और टीवी देखने की सुविधा मिल गई। उच्‍च गुणवत्‍ता के चित्र और वीडियो शूट करना संभव हो गया। इसमें कैलकुलेटर, विश्‍व के सभी देशों की समय घड़ी, पूरा तेज गति का कंप्‍यूटर इत्‍यादि सुविधाएं मिलीं। विदेशों में बात करना सस्‍ता हो गया,  बात करते समय एक-दूसरे को देखा भी जाने लगा। अनचाही कालों को रोकना, आने वाली काल की जानकारी प्राप्‍त करना और न जाने कितनी ऐसी ही चमत्‍कारों से परिपूर्ण मोबाइल फोन आज हर हाथ की शान है। सबकी जान इसमें बसती है। जानकारियों का खजाना है। कह सकते हैं कि पहले जो प्राण तोते में बसते रहे हैं, अब वह मोबाइल फोन में बस गए हैं। परिवारों में इस पर सालाना खर्च कई लाख रुपये तक पहुंच गया है। आज इसके बिना जीवन का चिंतारहित चलना मुश्किल हो गया है। 

    20वीं सदी के तकनीक के इस बहुमुखी योद्धा को सब दिल से चाहते हैं और इसको अपना रहे हैं। अगर तकनीक वरदान है तो अभिशाप भी है पर इसके कारण इसे छोड़ा नहीं जा सकता। ज्ञान-विज्ञान के इस युग में इस विशेष ज्ञान यानी विज्ञान से नुकसान कम नफा अधिक है।
    अब उसमें से कुछ नफा इस हिंदी ब्‍लॉग पोस्ट के हिस्‍स में आता है या नहीं, इसके लिए ब्‍लॉग के पाठकों को थोड़ा इंतजार तो करना ही होगा। 

    -    अविनाश वाचस्‍पति
    -    6 जून 2014  

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