दुनिया है गोल - फुटबाल की गोलाई

फुटबाल जरूर देखी होगी आपने, उसे कभी न कभी दो चार लातें भी मारी होंगी। फुटबाल को सामने देखकर उसे लातों से ठोकने का मन बन ही जाता है। आप एक लात मारते हैं और वह अपने बचने के लिए भाग लेती है। आप उसके पीछे दौड़कर फिर दो चार लातें और जड़ देते हैं और अगर वह आपके सिर की ऊंचाई को क्रास कर गई तो फिर अपना सिर उसे दे मारते हैं। यह मारना इसलिए चालू रहता है क्‍योंकि फुटबाल की पीटने वाली प्रक्रिया इस दौरान निष्क्रिय रहती है। इससे आपके हौसले बुलंद हो जाते हैं।
मन में क्रिकेट प्रेम होते हुए भी फुटबाल से एक असीम दुलार वाला भाव बना रहता है। सामने वाला सिर्फ पिट रहा हो तो उसके प्रति प्‍यार उमड़ना स्‍वाभाविक है। अबोध शिशु जो क्रिकेट, फुटबाल अथवा किसी अन्‍य खेल के अंतर को नहीं जानता। इस आयु में अपनी आंखों से सबमें तुलना करने की असफल, कुछ सफल कोशिश करता रहता है। इसे पहचानने की कोशिश करता है, किसी किसी को अच्‍छी तरह पहचान लेता है। फिर घुटनों के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश में विजयी रहने के बाद, धीरे-धीरे आगे बढ़ना और रेंगना शुरू कर देता है। इसी बीच वह अस्‍फुट शब्‍दों में पुकारता है,यह पुकारना बोलने की शुरूआत कही जाती है। उस उम्र में, जबकि शिशु के लिए उम्र के कोई मायने नहीं होते,उसके लिए गुब्‍बारा भी फुटबाल होता है, गेंद भी, सेब भी, संतरा भी या कोई प्‍लास्टिक की खाली बोतल। उसके लिए हंसना, मुस्‍काराना भी फुटबाल और रोना,चीखना,चिल्‍लाना भी फुटबाल सरीखा। भूख लगने पर पीने के लिए मिलने वाला दूध उसके लिए वह गोल होता है, जिसे उसने हाल ही में अचीव किया है।
आप अच्‍छी तरह जानते हैं कि मां-बाप के लिए बच्‍चा अमूल्‍य निधि होता है और उसकी हंसी भरी खिलखिलाहट खजाना। जिसे संसार की किसी तराजू पर तोला नहीं जा सकता है। सब उसे प्‍यार करना, पुचकारना चाहते हैं। बच्‍चा जिसे भी नजर भर देखकर हंस या मुस्‍करा दे तो वह धन्‍य हो जाता है। यह सिर्फ घर की बात नहीं है – सभी नाते-रिश्‍तेदार, चाचा, बुआ, नानी, ताई, दादा, पिता,दीदी, भैया सबके लिए वह मासूम और भोला होता है। बच्‍चा हंसी का गोल जिस ओर फेंक दे, खुशियां जमाने भर की बिखर-बिखर जाती हैं।
पर इन दिनों संसार जिस फुटबाल को खेल रहा है, वह ब्राजील का है। इस खेल को खेलने वाले फुटबाल कला में कुशल और पारंगत होते हैं। फिर भी अचरज सब विजयी नहीं होते। यह सृष्टि का एक ऐसा रहस्‍य है जो हमेशा से रहस्‍य ही बना हुआ है। जबकि इसमें नामी खिलाड़ी जीतने के लिए फुटबाल को अनेक तरीकों से पीटते हैं। इस जीत पर खिलाड़ी का कैरियर होता है। जीतने के कैरियर पर तब भी कोई बैरियर नहीं होता है। जीतते जाओ, फुटबाल को पीटते जाओ और गोल समेटते जाओ। खेल खेलो अथवा नहीं खेलो पर गोल सहेजना आदत में शुमार हो जाता है। हरेक कदम मजबूती से जमाओ। जमे पैरों से तेजी से आगे बढते जाओ, न कि फुटबाल की तरह डगमगाओ। किसी थाली के बैंगन की तरह लुढ़को मत, बरफी,चमचम की तरह एक ही जगह जमे रहो। स्‍वाद को इनके लजीजपने का शिकार करने दो।
संसार रूपी फुटबाल का देख लो कमाल, एक फुट से अधिक दूरी हो तो कामयाबी नहीं मिलती। इसलिए संघर्ष के लिए न देर करो और न दूरी रखो। तभी खाने को मिलती रहेगी हलवे संग पूरी अन्‍यथा जीत की इच्‍छा रहेगी अधूरी।

                              -    अविनाश वाचस्‍पति

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