स्‍वर्ग में रहने के भी दुख हैं, पीले पत्‍ते बतला रहे हैं (सच्‍ची कविता)

सूखे पत्‍ते पीले पड़ गए
पहचान बने हैं श्रीनगर की
दुख अपना कह रहे हैं
स्‍वर्ग के दुख कम नहीं हैं।

ठंड हमें भी लगती है
इंसान पहन लेते हैं
कर लेते हैं जुगाड़
बचने का प्रकोप से।

पर हम पत्‍ते झुलस जाते हैं
ठंड से
ठंड जो माइनस में जाती है
ऑक्‍सीजन हमारी हर लेती है
हरे रंग से कर देती है पीला।

ज्‍यों हरे रंग का रक्‍त हमारा
निचोड़ लिया गया हो  या
गया हो चूसा ठंड देव द्वारा।

ठंड देवों को भी नहीं लगती
वह स्‍वर्ग में करते हैं वास
हम नहीं ले पाते हैं सांस
गर्मी की नहीं है हमें आस।

स्‍वर्ग आपका हमारे लिए
नर्क से किसी मायने कम नहीं
जबकि हम देते आए हैं
सदा से फल, हरियाली
हमारी यही अदा निराली।

2 टिप्‍पणियां:

  1. पत्ते क्यों पीला पड़ना चाहते हैं
    कहीं और क्यों नहीं चले जाते हैं !

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  2. स्‍वर्ग आपका हमारे लिए
    नर्क से किसी मायने कम नहीं
    जबकि हम देते आए हैं
    सदा से फल, हरियाली
    हमारी यही अदा निराली।
    ....इस अदा को जाने कब समझेगा इंसान ...
    प्रेरक रचना

    जवाब देंहटाएं

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