मैंने इतना ज्‍यादा लिख दिया है कि मूल्‍यांकन में बाधा पैदा हो रही है - उ्दभ्रांत 30 जून 2013 के जनसंदेश टाइम्‍स में साक्षात्‍कार

जबकि मेरा मानना है कि 
सच्‍चा मूल्‍यांकन पाठक
करते हैं
पर पाठक एकजुट नहीं हैं
क्‍यों नहीं
किसी सोशल साइट पर
बना दिया जाए
पाठकों का गुट
जिन्‍हें कहा जाता है
पंखा क्‍लब 
और क्‍लब कर दिया जाए
साहित्‍य और साहित्‍यकारों को
पाठकों के साथ
कब बनेगा यह क्‍लब ?


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