जबकि मेरा मानना है कि
सच्चा मूल्यांकन पाठक
करते हैं
पर पाठक एकजुट नहीं हैं
क्यों नहीं
किसी सोशल साइट पर
बना दिया जाए
पाठकों का गुट
जिन्हें कहा जाता है
पंखा क्लब
और क्लब कर दिया जाए
साहित्य और साहित्यकारों को
पाठकों के साथ
कब बनेगा यह क्लब ?
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