हमारा कमजोर होना
हमें बनाता है
बार बार कमजोर
घटता जाता है जोर
हम हैं
जोरदार कमजोर
जोर जो जबर्दस्ती होना चाहिए
इसका तक नहीं कर पाते हैं हम
सब मिलकर बंदोवस्त
जोर के मामले पर
हो जाते हैं पस्त
पस्त के बाद सुस्त
सुस्त के बाद
उठाते हैं
रोज रोज
हर मोर्चे पर
भयंकर कष्ट
कष्ट से चाहते हैं मुक्ति
पर जबर नहीं बन पाते।
सही है जोरदार कमजोर है ....
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