बैसाखी की वही पुरानी
तेरे-मेरे मधुर प्यार की
अनभूली-सी प्रेम कहानी.
बैसाखी के ढोल बजे थे
मेरे पास अचानक आकर
मेरे निश्छल गीत नेह के
छीन लिए मेरे अधरों से
तेरी कजरारी आँखों ने.
भींच लिया था फिर पलकों को
गीतों में ही छिप जाने को..... याद मुझे अब भी आती है
केसर की हलकी फुहार से
मौसम के इस नए वर्ष में
सतरंगी मेरे स्वप्नों को
जब तुमने अपने आँगन में
सजा लिए थे नेह भाव से
छिपा लिया था अपने मन में
एक रंग में लिथ जाने को..... याद मुझे अब भी आती है
नाच रही थीं फसलें सारी,
झूम रहे थे वन-वन उपवन
मेरे दिल के हर कोने में
जानी-सी तस्वीर प्यार की
छिपा दिया हौले-से आकार
तेरी भोली-सी सूरत ने
जीवन भर के बस जाने को....... याद मुझे अब भी आती है
अब भूली-सी याद रह गयी,
वह जीवन की मधुर बैसाखी
बीत गया सरसों का सावन
रूठ गए जब अपने सारे
अब कैसे आनंद मनाऊं
जब सुधियों में शेष रह गयी
बैसाखी की वही पुरानी
तेरे-मेरे मधुर प्यार की
अनभूली-सी प्रेम कहानी...... याद मुझे अब भी आती है
(डॉ हरीश अरोड़ा)
वाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह जी मन हरियाली से भर गया
जवाब देंहटाएंनव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!! बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आने के लिए में माफ़ी चाहता हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग