कुछ भूकंपनियां फेसबुक पर कल धमाल मचाती रहीं
HAPPY BHUKAMP
बहुत दिनों बाद आया है
मेहमान है स्वागत करो
यूँ न डरो फेसबुक वासियों।
भूकम्प से डर लगता है
वह हिलते रहा करें
हिलते रहा करें
मचलते रहा करें
मचलते रहा करें
उछलते रहा करें
फिर भी डर लगे
डरते रहा करें
मेरे व्यंग्य पढ़ा करें
उन्हें पसंद किया करें
कमेन्ट किया करें
भूकम्प शर्मिंदा है
कह रहा है
अब नहीं आऊंगा कभी
डूब कर मर जाऊंगा
अभी के अभी।
हम पहले ही हिले हुए है
भूकम्प से मिले हुए है
हिले हुए को हिला सके
भूकम्प में दम नही जानी
भूकम्प हमसे है समझ लीजे
हम भूकम्प से नहीं अज्ञानी।
हिले हुए को कौन हिला सका है
चाहे कितना ही ज़ोरदार हो भूकम्प।
कह रहे हैं दिल्ली में भूकंप आया था !!!
(कैसे मान लूं, नेता तो सारे के सारे साबुत हैं)
काजल कुमार
कह रहे हैं दिल्ली में भूकंप आया था !!! (कैसे मान लूं, नेता तो सारे के सारे साबुत हैं) बकौल काजल कुमार
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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फेसबुक पर भूकंपनियां
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भूकंप पर ताजी व्यंग्यात्मक कविता। नुकिली नहीं पर प्रासंगिक है। भूकंप आए चाहे लडाई हो, चाहे ईश्वर का कोप हो नेता तो साबुत ही रहेंगे। कभी सत्ता में, कभी विपक्ष में। कुर्सी और नेतागिरी तो बनी रहेगी। अद्भुत ताकतों के गलत इस्तमाल को रोकने के लिए हमेशा ईश्वर ने अवतार लिया था। पर नेताओं को रोकने का कोई तोड नहीं। ईश्वर जिंदा नहीं। ईश्वर जो बन सकता है वह 'मतदाता' नेताओं की चाटुकारिता में और निजि स्वार्थों में लीन है। तो भाई दिल्ली में न राजनीतिक भूंकप आएगा, न नेताओं की पक्ष-विपक्ष की कुर्सी जाएगी। प्राकृतिक भूकंप से अगर किसी को मरना है तो वह सामान्य जनता मरेगी। नेताओं के घर तो भूकंप रोधक है। अगर गलती से नेता मरा भी तो स्मृतिस्थलों एवं पुतलों में जिंदा ही रहेगा।
जवाब देंहटाएंकिसी को जख्म करना हमारा मकसद भी नहीं है विजय जी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा लेख | आभर
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
हा हा हा :)
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