दलों को दलदल में बदलने के लिए के लिए पहले यह सेहरा राजनैतिक दलों के माथे पर बांधा जाता रहा है, अब भी बांधा जाता है। कहा और माना जाता है कि दलदल के विकास में दलों की भूमिका असंदिग्ध है। मतलब जहां राजनैतिक दल होंगे वहां पर दलदल अवश्य होगा। जबकि यह सच्चाई है कि दलदल में धंसना कोई नहीं चाहता पर सामनेवाले को फंसाकर धंसाने के लिए सदा तत्पर मिलता है। स्थितियां ऐसी बना दी जाती हैं कि मानव समझ ही नहीं पाता कि वह दलदल में गहरे समाता जा रहा है । इसके लिए जिम्मेदार कारक लालच, वासना, बेशर्मी जैसी स्थितियां हैं, जो रंगीन दिखते हुए भी संगीन होती हैं। धीरे धीरे इसमें भरपूर विकास हुआ है और दलदल में सबको धंसा, लाभ हासिल करने के लिए दलाल सक्रिय हो गए।
नतीजा आप देख रहे हैं कि संसार में जितने इंसान नहीं हैं, उनसे अधिक सक्रिय दलाल हैं। आप चाहकर भी दलालों से, दलालों के कारण ही दलदल से बच नहीं पाते हैं। घोटाला करना हो, मकान किराए पर लेना हो, खरीदना बेचना हो, रेल, हवाई, बस की टिकटें लेनी हों मतलब हर सीधे टेढ़े काम में दलालों की सीधी भूमिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में घुसपैठ कर जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई है। यहां तक कहने को मजबूर हो गया हूं मैं कि देश में ‘दलाल संस्कृति’ विकसित हो चुकी है और इसके काबू में घोटाले करवाने वाले, कुर्सी के लिए टिकट दिलवाने में मदद करवाने वाले चौकस रहते हैं, इनका दायरा बढ़कर विरोधियों को बदनाम कराने और उनकी हत्या करवाने तक पर देखा जा रहा है। यह समाज के लिए घातक प्रवृति है।
दलालों का बढ़ता प्रभाव समाज में अराजकता को दिनोंदिन बढ़ा रहा है। इससे मानव ही नहीं, बड़े बड़े देश भी त्रस्त हैं। पर इनसे ग्रस्त होकर छुटकारा मिलना इसलिए मुमकिन नहीं रहा है क्योंकि जीवन में सुख की चाहना सदैव से चहचहाती रही है और यह झूठ कि ‘जितना अधिक धन होगा, उतना अधिक सुख मिलेगा’, इसके लिए जिम्मेदार है।
दलाली की लालिमा कम करने वाला भी अपने कार्य के लिए जब पाने की इच्छा करके लाभ पाना शुरू कर देता है तो उसे कालिमा कहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। मानना पड़ेगा कि दलाली ने बाकायदा अब एक धंधे का रूप अख्त्यिार कर लिया है। कोई भी सौदा बिना दलाली के खरा नहीं उतरता अपितु इसे सेवा करके लाभ पाना स्वीकार कर लिया गया है। दलाली एक तरह से विशिष्ट सेवा का रूप धारण करके सबको अपने प्रभाव से लुभा रही है। यह रिश्वत न होते हुए भी उसी के परिवार की सदस्य है, बल्कि उसकी सगीन बहन है। सुविधा सेवाओं के लिए जितनी भी पेमेंट ली जाती है, वह होती दलाली ही है। बस देर सिर्फ इतनी भर है कि इस पेमेंट पर टैक्स लागू हो जाएं तो दलाली भी कानून सम्मत रूतबा हासिल करने में सफल हो जाएगी।
दलालों को मध्यस्थों, बिचौलियों, लाबिंग करने वालेों के तौर पर ख्याति मिलती है। अब तो ऐसा महसूस हो रहा है कि दलालों को कभी काबू नहीं किया जा सकेगा और हम इसे झेलने को अभिशप्त रहेंगे। इन्हें जल्दी ही भारत मां के लाल के तौर पर सम्मानित होता हुआ आप और हम सब देखेंगे ही नहीं सम्मानित करने की अनुशंसा भी करेंगे।
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