बजट की रेल ने लूटा : दैनिक जागरण 1 मार्च 2013 में 'फिर से ' स्तंभ में प्रकाशित



बजट की रेल ने लूटा रेल यों तो जोड़ती है, चाहे स्टेशन के बाद स्टेशन छोड़ती है, बजट के नाम पर उसने यात्रियों को निचोड़ दिया है। निचोड़ा धोने के बाद ही जाता है। रेल बजट ने पब्लिक को धोया, फिर निचोड़ा, फिर पेर दिया, वैसे ही जैसे गन्ना पेरते हैं। मंत्री बजट के बहाने जनता की जेट काटते हैं। वाई-फाई मुहैया करा हाई-फाई तरीके से डकैती जारी है। किराया नहीं बढ़ाया, पर सर पर चार्ज इतना धर दिया कि यात्रियों के डिस्चार्ज होने में गनीमत बाकी न रहे। किराया ही बढ़ा लिया होता, यह दुर्दशा तो नहीं होती। आप टिकट खरीदने के लिए जितनी इंटरनेटमारी करते हैं या टिकट बुक, कैंसिल अथवा तत्काल के चंगुल में फंसते हैं। सब के प्रभारी भारी कर दिए हैं, काटते हैं बहुत तेजी से ज्यों आरी कर दिए हैं। बजट यात्रियों के लिए संकट बनकर आया है। सबसे पहले तो आप इस मुगालते से बाहर निकलिए कि लोहे की रेल सिर्फ पटरियों पर ही भारी पड़ती है। इसे पटरियों पर दौड़ाते हुए यात्रियों को कुचलकर कैसे कचूमर निकाला जाता है, साफ झलक रहा है। इसके कारनामे वही आम रहेंगे। इससे आप यह न समझने लगें कि बजट के बाद से आपको कन्फर्म टिकट मिला करेगी, यात्रा आपकी सुखमय हो जाएगी, सुरक्षा बढ़ जाएगी, रेल नीर पीने से किसी के पेट में पीर नहीं होगी, तब आप गलतफहमी के आसान शिकार हैं। रेल की महंगी टिकटों और उन पर लगाए चार्ज पीडि़त आप पहले से हैं। यह कहा जा सकता है कि रेल क्योंकि बिजली से चलती और गति पकड़ती है, उसमें से करंट का कुछ प्रतिशत हिस्सा यात्रियों के हिस्से में इस तरह लगाया गया है कि उनका तेल भी निकाल दिया गया है। यह वह तेल है जो निकलते समय न तो दिखता है, न इस पर कोई फिसलता है, पर बिना फिसले भी गिरता जरूर है, सो गिर रहा है, शेयर बाजार में गिरावट की तरह। आप तेल कह रहे हैं, पसीना कह लें। नहीं भी कहेंगे या मानेंगे तो यह न समझिए कि आप इसकी जद में आने से बच जाएंगे। कितना अजीब विरोधाभास है, विसंगति कर रही सत्यानाश है। जो उड़ रहा है, उसके किराए सस्ते हैं और जो धीमे-धीमे सरक रहा है उसके महंगे और मुसीबत भरे हैं। हवाई जहाज के किरायों में कमी और रेल किरायों को बिना छेड़े बढ़ोतरी करना कुशल कलाकारी है, इसका मंत्र मंत्रियों के पास ही पाया जाता है। इस कुशल कार्य के लिए मंत्रियों की तारीफ करना अलग बात है, पर इससे छुक-छुक रेल आपके दिल की धुक-धुकी बढ़ाते हुए रुक-रुक रेल नहीं बन जाएगी, इसकी क्या गारंटी है? बजट आपकी बचत पर चपट बनकर जरूर रहपटियाने से बाज नहीं आएगा 

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