रेल यूं तो जोड़ती है, चाहे स्टेशन के बाद स्टेशन छोड़ती है, बजट के नाम पर उसने यात्रियों को निचोड़ दिया है। निचोड़ना एक ऐसी क्रिया है जो धोने के बाद संपन्न होती है। रेल बजट ने पब्लिक को धोया फिर निचोड़ा फिर पेर दिया है, वैसे ही जैसे गन्ना पेरते हैं। गंदगी पब्लिक में नहीं है, गंदगी से लबालब वे हैं जिनके पास मंत्र हैं। मंत्र ऐसे जिनके लिए काटा हुआ होना जरूरी नहीं है। मंत्री बजट के बहाने पब्लिक की पॉकेट काटते हैं। वाई फाई मुहैया कराकर हाई फाई तरीके से डकैती जारी है। किराया नहीं बढ़ाया पर सर पर चार्ज इतना धर दिया कि यात्रियों के डिस्चार्ज होने में कोई गनीमत बाकी न रहे। इससे तो किराया ही बढ़ा लिया होता, तब यह दुर्दशा तो नहीं होती। आप टिकट खरीदने के लिए जितनी इंटरनेटमारी करते हैं या टिकट बुक, कैंसिल अथवा तत्काल के चंगुल में फंसते हैं। सब के प्रभारी भारी कर दिए हैं, काटते हैं बहुत तेजी से ज्यों आरी कर दिए हैं। बजट यात्रियों के लिए नि:संदेह संकट बनकर आया है।
सबसे पहले तो आप इस मुगालते से बाहर निकलिए कि लोहे की रेल सिर्फ पटरियों पर ही भारी पड़ती है। इसे पटरियों पर दौड़ाते हुए यात्रियों को कुचलकर कैसे कचूमर निकाला जाता है, साफ झलक रहा है। जिससे छुक छुक करती हुई रेल की मधुर तान धुक धुक रेल बन गई है और ताना मार रही है। इसके कारनामे वही आम रहेंगे। इससे आप यह मत समझने लगें कि बजट के बाद से आपको कन्फर्म टिकट मिला करेगी, यात्रा आपकी सुखमय हो जाएगी, सुरक्षा बढ़ जाएगी, रेल नीर पीने से किसी के पेट में पीर नहीं होगी, तब आप गलतफहमी के आसान शिकार हैं, रेल की महंगी टिकटों और उन पर लगाए चार्ज पीडि़त आप पहले से हैं।
यह कहा जा सकता है कि रेल क्योंकि बिजली से चलती और गति पकड़ती है, उसमें से करेंट का कुछ प्रतिशत हिस्सा यात्रियों के हिस्से में इस तरह लगाया गया है कि यात्रियों का तेल भी निकाल दिया गया है। यह वह तेल है जो निकलते समय न तो दिखता है, न इस पर कोई फिसलता है, पर बिना फिसले भी गिरता अवश्य है, सो गिर रहा है, शेयर बाजार में गिरावट की तरह। आप तेल कह रहे हैं, पसीना कह लें – नहीं भी कहेंगे या मानेंगे तो यह मत समझिए कि आप इसकी जद में आने से बच जाएंगे, देखिए कितना अजीब विरोधाभास है, विसंगति कर रही सत्यानाश है। जो उड़ रहा है, उसके किराए सस्ते हैं और जो धीमे-धीमे सरक रहा है उसके महंगे और मुसीबत भरे हैं। हवाई जहाज के किरायों में कमी और रेल के किरायों को बिना छेड़े बढ़ोतरी करना एक कुशल कलाकारी है, इसका मंतर मंत्रियों के पास ही पाया जाता है। इस कुशल कार्य के लिए मंत्रियों की तारीफ करना अलग बात है, पर इससे छुक छुक रेल आपके दिल की धुक धुकी बढ़ाते हुए रुक रुक रेल नहीं बन जाएगी, इसकी क्या गारंटी है ? बजट आपकी बचत पर चपट बनकर जरूर रहपटियाने से बाज नहीं आएगी।
आपकी पोस्ट 27 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
जरूर पधारेंगे जरा रेल पर लगे सरचार्ज की कुछ आदत तो पड़ने दीजिए।
हटाएंसच में हम-आप का तेल निकलकर ही मानेगे ये लोग.
जवाब देंहटाएंचाहकर भी तेल न निकाल पाएं, इसलिए ही तो सीएनजी करता हूं इस्तेमाल।
हटाएंबचत पर चपत.....
जवाब देंहटाएंसरकार का काम है यह तो!!
हरबार का काम है यह तो!!
हर बार का काम है सरकार का
हटाएंतो हम भी हर बार हल्ला मचायेंगे
अब रेल में ही जेब नहीं कटेगी,जेब कटा कर ही रेल में बैठेंगे.तुर्रा यह कि किराया बढाया नहीं,आपको सुविधा देंगे.वह रेल मंत्रीजी,पर मजबूर जनता क्या करेगी ?
जवाब देंहटाएंहवाई जहाज के किरायों में कमी और रेल के किरायों को बिना छेड़े बढ़ोतरी करना एक कुशल कलाकारी है, इसका मंतर मंत्रियों के पास ही पाया जाता है....सब पर बस जो चल जाता है इनका ....जनता के सेवक जाने किस मुहं से कह लेते हैं?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति