ताज साहित्‍य उत्‍सव 2013 : साहित्‍य की विशेष धारा (विधा) है ‘फायकू’


ब्‍लॉग एवं समाचार पत्र/पत्रिकाएं इत्‍यादि इस समाचार को 'साहित्‍य हित' में प्रकाशित कर सकते हैं। 



आगरा। साहित्य में लोकतंत्र बन रहा है, नयी तकनीक के जरिये। फेसबुक, ट्विटर पर लिखने वाले लेखक किसी खलीफा, किसी मठाधीश से पूछ कर, उससे सहमति स्वीकृति लेकर नहीं लिख रहे हैं। ये नये लेखक प्रयोग कर रहे हैं, ये साहित्य का लोकतंत्र है,जो बन रहा है। ताज साहित्य उत्सव में नयी तकनीक और साहित्य के संबंधों को लेकर व्यंग्यकार, लेखक आलोक पुराणिक ने यह बात कही। आलोक पुराणिक ने कहा कि हो सकता है कि नये मंचों, नये माध्यमों पर जो आये, वह कच्चा हो, सुघड़ ना हो। पर समय की छलनी में छनकर जो कुछ भी सार्थक है, काम का है, बचा रह जायेगा। फेसबुक मठाधीशों को नागवार गुजर रहा है। लेखक कह रहा है, पाठक देख रहा है, बीच के मठाधीश इससे नाराज हैं।

वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि हिंदी समाज अपनी भाषा की दुर्गति होते देख रहा है। हिंदी भाषा समेत तमाम भारतीय भाषाओं में वह धमक नहीं है, जो अंग्रेजी की है।  हिंदी के पत्रकार अंग्रेजी के शब्दों का बहुत प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी के पत्रकार हिंदी के शब्दों का  उतना प्रयोग नहीं करते हैं। भाषा के साथ यह खिलवाड़ ठीक नहीं है। राहुल देव ने कहा कि अखबारों में जो हिंदी देखने में आ रही है, वह दरअसल हिंदी की हत्या है। राहुल देव भारतीय भाषाओं के भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। अंग्रेजी की घुसपैठ को उन्होने चिंतनीय माना। 

हिंदी और इंगलिश साहित्य के गहन अध्येता अरविंद जोशी ने कहा कि फेसबुक और ट्विटर पर जो लिखा जा रहा है, वह एक तरह से क्षणभंगुर हो रहा है। हम खानाबदोशों की तरह का लेखन कर रहे हैं।  किसी एक विषय पर,ट्रेंड पर लोग टूट पड़ते हैं। फिर किसी और नयी ट्रेंड की तरफ चले जाते हैं। नयी तकनीक में ऐसा हो रहा है। अरविंद जोशी ने कहा कि नयी तकनीक, नये मंचों को पहचान मिल रही है। विदेशों में इंटरनेट पर लिखे गये साहित्य के लिए अलग पुरस्कारों की व्यवस्था हो रही है। किताबों के बाहर के साहित्य के लिए जगह बन रही है।

महोत्सव के दौरान साहित्य की कसौटी पर सोशल मीडिया के मंचों पर लिखत-पढ़त और सोशल मीडिया की भाषा,सरोकार और उपयोगिता के आयाम विषयों पर चर्चा के दौरान तमाम महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विमर्श हुआ। इस दौरान आई एम फिल्म के सह निर्माता और ब्लू माउंटेन फिल्म के निर्माता राजेश जैन ने कहा कि फेसबुक के जरिए आजकल फंड जुटाया जा रहा है, और उनके जैसे हस्तशिल्प निर्यातक को फेसबुक के जरिए ही फिल्म निर्माता बनने का मौका मिला। यह सोशल मीडिया की उपयोगिता का एक अलग आयाम है। 

देश में हिंदी के शुरुआत के ब्लाग लिखने वालों में से एक प्रतीक पांडे ने कहा कि तकनीक ने लेखन-साहित्य का लोकतंत्रीकरण किया है। अब तो नया साहित्य नया लेखन पंसारी की दुकान करने वाले, पान की दुकान करने वाले भी रचेंगे। लेखन का अभिजातीकरण खत्म हो रहा है। तकनीक ने इसे संभव बनाया है। साहित्य किसी सीनियर आलोचक की बपौती नही है, जो ये लाइसेंस दे कि कौन लेखक और कौन कवि। तकनीक ने हर किसी का  लेखक कवि होना संभव किया है। किसने कैसा लिखा, यह समय तय कर देगा।

वरिष्ठ पत्रकार और सोशल साइट्स के विशेषज्ञ पीयूष पांडे ने चर्चा के दौरान कई महत्वपूर्ण सवालों को रेखांकित किया। पीय़ूष पांडे ने सोशल साइट्स की भाषा पर सवाल उठाये कि यह नयी भाषा एक नयी दिशा ले रही है। इसमें अनुशासन का अभाव दिखता है। अपनी मर्जी की भाषा इंटरनेट पर लिखी जा रही है। पीयूष पांडे ने कहा कि हालांकि हमें ये भी समझ लेना चाहिए इंटरनेट पर भाषा पर किसी किस्म की बंदिश लगाना तकनीकी तौर पर असंभव है। ऐसी सूरत में हमें रास्ता निकालना है कि कोई इंटरनेट, फेसबुक का अनुचित इस्तेमाल ना कर जाये। पीय़ूष पांडे ने चर्चा के संचालन के दौरान यह कहा कि धीमे धीमे ये सहमति बन रही है कि ये नया माध्यम नये लेखकों के लिए बहुत सकारात्मक साबित हो रहा है। पर इसके खतरों को समझा जाना भी जरुरी है।

वरिष्ठ ब्लॉगर एवं चर्चित व्‍यंग्‍यकार अविनाश वाचस्पति ने कहा कि इंटरनेट फेसबुक पर रचनात्मकता की नयी विधाएं पैदा हो रही हैं। उन्होने एक नयी साहित्यिक विधा ‘फायकू’ का जिक्र किया, जिसमें बहुत थोड़े शब्‍दों में कारगर तरीके से सलीकेदार बात की जा रही है। अविनाश वाचस्पति ने बताया कि नये प्रयोग फेसबुक पर संभव है क्‍योंकि बहुत सस्ते में ही अपनी बात देश विदेश के पाठकों तक रखने की संभावना फेसबुक ने मुहैया कराई  है।

कवि और अहा जिंदगी पत्रिका के फीचर संपादक चंडीदत्त शुक्ल ने अपनी बात जगजीत सिंह की गजल के सहारे से रखी। गजल उद्धृत करते हुए उन्होने कहा कि प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है। श्री शुक्ल ने कहा कि  अभी ये नये माध्यम हैं इन्हे बनने-विकसित होने में वक्त लगेगा।

श्रोताओं की तरफ से एक महत्वपूर्ण सवाल पुनीत पांडे ने पूछा कि अगर कुछ शब्द अंग्रेजी के हिंदी में आ जायें, तो क्या इसे हिंदी का भ्रष्ट होना माना जायेगा। इस सवाल को गंभीर बहस का सवाल मानते हुए कहा गया कि इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार किये जाने की जरुरत है। 


नुक्‍कड़ टीम प्रस्‍तुति।

2 टिप्‍पणियां:

  1. avinash ji,
    khabar ke liye aabhaar.
    ek sudhar kar len,
    patrika ke sampadak aadarneeya shri alok ji hain, main unka sahyogi matra hoon. :)

    जवाब देंहटाएं
  2. आप सहयोगी मात्र हैं इसलिए मात्रा नहीं बढ़ाई है अपितु शब्‍द फीचर घटा दिया है।

    जवाब देंहटाएं

आपके आने के लिए धन्यवाद
लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

 
Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz