दीप संध्या
नयनों के उनके में दीपक जलाऊं
यूं इस बार अपनी दिवाली मनाऊं।
सजनी की पलकों का हल्का लजाना
अधरों को दातों के नीचे दबाना
है जीवन का एहसास खुशियाँ मनाना
अधरों पर अंकित में हर गीत गाऊं
यूं इस बार अपनी दिवाली मनाऊं।
स्वप्नों के रंगों में चाहत सजन की
पलकों के आँगन में महके सुमन की
प्यासी है नदिया प्यासे नयन की
मंजुल छवि से मैं आँचल उठाऊं,
यूं इस बार अपनी दिवाली मनाऊं।
नयन उनके मासूम चंचल दुलारे
अनारों के दानों से झिलमिल ओ' प्यारे
के आँचल में जैंसे जड़े हों सितारे
उन्हें मन के मन्दिर में अपने सजाऊं
यूं इस बार अपनी दिवाली मनाऊं।
मधुर दिवाली
मधुर मधुर मेरे दीपक से
नेह रूप की जली दिवाली
मंजुल मंजुल सौम्य किरण बन
पलकों के तल पली दिवाली।
कंचन कंचन जल से भीगी
सजी हुई दीपों की पांती
जीवन में खुशियाँ भर लाई
उसके अमर रूप की बाती
झनक झनक कोमल पग धर तल
झूम झूम कर चली दिवाली।
मधुर सुधा रस से है छलकी
उसके निर्झर तन की काया
अधरों के कम्पन से लिपटी
प्रेम सिक्त दीपक की छाया
मन में हंसती ओ' इठलाती
मेरा मन छल चली दिवाली।
डॉ हरीश अरोड़ाwww.sahityakarsansad.indrharisharora@gmail.com |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंत्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
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बहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें
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