खिचडी़

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  • सुशील कुमार जोशी
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  • लोहे की एक पतली सी कढ़ाही
    आज सीढ़ियों में मैने पायी
    कुछ चावल माँस के दाने
    अगरबत्ती एक बुझी हुवी
    सांथ में एक पैकेट माचिस
    मिट्टी का दिया तेल पिया हुवा
    जलाने वाले की तरह बुझा हुवा
    बताशे कपड़े के कुछ टुकड़े
    एक रूपिये का सिक्का
    ये दूसरी बार हुवा दिखा
    पहली बार कढ़ाही जरा छोटी थी
    साँथ मुर्गे की गरधन भी लोटी थी
    कुत्ता मेरा बहुत खुश नजर आया था
    मुँह में दबा कर घर उठा लाया था
    सामान बाद में कबाड़ी ने ऊठाया था
    थोड़ा मुंह भी बनाया था
    बोला था अरे तंत्र मंत्र भी करेंगे
    पर फूटी कौड़ी के लिये मरेंगे
    अब कौन भूत इनके लिये
    इतने सस्ते में काम करेगा
    पूरा खानदान उसका भूखा मरेगा
    इस बार कढ़ाही जरा बडी़ नजर आई
    लगता है पिछली वाली
    कुछ काम नहीं कर पायी
    वैसे अगर ये टुटके काम करने
    अगर लग जायें
    तो क्या पता देश की
    हालत सुधर जाये
    दाल चावल तेल की मात्रा
    तांत्रिक थोडा़ बढ़ा के रखवाये
    तो किसी गरीब की खिचड़ी
    कम से कम एक
    समय की बन जाये
    बिना किसी को घूस खिलाये
    परेशान आदमी की बला
    किसी दूसरे के सिर चढ़ जाये
    फिर दूसरा आदमी खिचड़ी
    बनाना शुरू कर ले जाये
    इस तरह श्रंखला
    एक शुरू हो जायेगी
    अन्ना जी की परेशानी
    भी कम हो जायेगी
    पब्लिक भ्रष्टाचार हटाओ
    को भूल जायेगी
    हर तरफ हर गली
    कूचें मे एक कढ़ाही
    और खिचड़ी नजर आयेगी ।

    3 टिप्‍पणियां:

    1. This practice is very common specially in villages...where people do such kind of activities in the expectation of harming some person ....nice writing bro

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    2. हर तरफ हर गली
      कूचें मे एक कढ़ाही
      और खिचड़ी नजर आयेगी । super

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