मौत को अब तू
मनाना सीख ले
बुलाए मौत तुरंत
जाना सीख ले
मैं तैयार हूं
आ मौत, कर मेरा सामना
मैं नहीं करूंगा
तुझे मना
डर कर नहीं लूंगा
नाम तेरा
जानता हूं, मारना ही है काम तेरा
डराना भी तूने अब
सीख लिया है
डरना नहीं है, जान ले, काम मेरा
आए लेने तो करियो
मौत
पहले तू सलाम
कबूल करूंगा सलाम
तेरा नहीं डरूंगा
भय की भीत पर मैं नहीं
चढूंगा
कर लिया है तय
डर कर मैं एक बार
भी नहीं मरूंगा
मारना चाहेगी तू
मुझे मैं तब भी नहीं डरूंगा
मरूंगा, तैयार हूं मरने को
लेकिन जी हुजूरी
कभी नहीं करूंगा
न मौत की
न बीमारी की
न सुखों को काटने
वाली आरी की
दुखों से करूंगा
प्यार मैं, यारी करूंगा
लेकिन उधार लेकर
नहीं मरूंगा
नियम यह मैंने तय
किए हैं
तुझे न हों पसंद
नहीं पड़ता अंतर
जीवंतता से जीने
का
यही है मेरा कारगर
मंतर।
मौत को मत सिखा
जवाब देंहटाएंबस मंतर चला
उसे भी नहीं पता
अपना अता पता ।
मौत को लाना है होश में
हटाएंस्वस्थ रहें-
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ||
रविकर जी को शुक्रिया कामनाएं
हटाएंAapke achchhe swasthy ki kaamna hai... Jaldi swasth ho, aayushman ho...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शाह जी
हटाएंजीवंतता से जीने का
जवाब देंहटाएंयही है मेरा कारगर मंतर।
इस मंतर के आगे मौत भी हार जाती है... शुभकामनायें...
स्वस्थ कामनाएं ही स्वस्थ बनाती हैं संध्या जी शुक्रिया जी
हटाएंकर लिया है तय
जवाब देंहटाएंडर कर मैं एक बार भी नहीं मरूंगा
आमीन......!!
शुक्रिया हरकीरत जी
हटाएंकाम का मंतर :-)
जवाब देंहटाएंआभार!
मंतर सभी तार देते हैं बशर्ते कि काम के हों। आभार अशोक जी
हटाएंवाह एक सशक्त एवं प्रभावशाली रचना....
जवाब देंहटाएंताकत को और ताकतवर एवं प्रभावशाली बनाने के लिए पल्लवी जी धन्यवाद।
हटाएंसन्दर्भों से जुडी सामयिक रचना .
जवाब देंहटाएंफेसबुक जीने नहीं देगा,हम मारने नहीं देंगे !
जवाब देंहटाएंजीवंतता से जीने का
जवाब देंहटाएंयही है मेरा कारगर मंतर
शुभकामनाएँ !
सादर !
मरना तो है ही मगर अभी क्यों आना, कुछ और जो काम शेष है ...कर लें फिर चलते हैं !
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