परिकल्‍पना सम्‍मान : सूची नहीं सूचना है


इस बार चिडि़यों
चींटियों और फूलों
को सम्‍मानित करने
का है विचार।

अगले बरस करेंगे
अरहर की दाल
मूंग की और मसूर
तथा चने की दाल
का यथोचित सम्‍मान।

किसी को हो आपत्ति
तो खेले आकर तीन पत्‍ती
तीनों पत्तियां भिन्‍न
कलर की हों।

प्‍याज, आलू, बैंगन
जैसे चेहरों को भी
अब कहां छोड़ेंगे
इस बरस नहीं
अगले बरस नहीं
तो अगले पांच बरस में
तो दे ही देंगे।

नाराज नहीं करना चाहेंगे
नाहक बेहकदारों को भी
जो कर रहे हैं पहरेदारी
पूरी ईमानदारी से
टिप्‍पणियों और ब्‍लॉग
पोस्‍टों की।

जो कर रहे हैं चर्चा
उनका भी हो रहा है खर्चा
उन्‍हें भी नहीं बख्‍शेंगे
उन्‍हें भी सम्‍मान में
मान अवश्‍य देंगे।

कोई धर्म, कोई वाद, कोई विवाद
इसमें उल्‍लेखनीय नहीं होगा
आगे न हो इसका भी रखा जाएगा ध्‍यान
जो टांग अड़ाएगा, उसकी टांग गर्दन
काटने का सबको अधिकार होगा
पर जान लेना गैर कानूनी है
इसलिए जान नहीं
लेकिन प्राण लिए जा सकते हैं।

प्रचार के लिए कोई भी उपाय
वैध होंगे , सारी अवैधताएं
वैध घोषित कर दी जाएंगी।

फिर भी अंतिम तौर पर
आपकी आपत्तियां
मांग रहे हैं
चाहे विपत्ति आए
चाहे पेड़ों की सभी पत्तियां
झड़ जाएं और पतझड़ आए।

पर पतझड़ के बाद ही छाती है हरियाली
हरियाले तोते ने यही कहा है
कभी किसी तोते को काले रंग में देखा है
उसकी चोंच सदा रहती है लाल गुलाब।

9 टिप्‍पणियां:

  1. Very strange... Samajh nahi aayaa.... Sar ke upar se nikal gaya....

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    1. शाहनवाज भाई
      व्‍यंग्‍य की यही होती है खासियत
      हेलमेट नहीं धारण करो तो
      सिर के ऊपर से
      धारण करो तो
      दांए बांए से निकल जाता है
      इसलिए ही तो व्‍यंग्‍य कहलाता है।

      बिल्‍कुल सीधा सपाट उसमें
      कुछ नहीं लिखा जाता है
      वहां पर अनुभव भी
      काम नहीं आता है।

      चींटी मतलब मेहनती
      चिडि़या मतलब फूल नहीं मैना
      चंपा चमेली
      फिर दाल चनों को भी तो
      पहचानना है
      न कि सिर्फ रचना से ही
      करना सामना है।

      हटाएं
  2. nice लिखने का कॉपीराइट श्री रणधीर सिंह सुमन जी का है। आप तो कविता ही लिख सकते हैं रविकर जी। अपनी कविता को वाह वाह में मत फिजूल कीजिए। लिखिए बंधु लिखिए त्‍वरित एक कविता अवश्‍य लिखिए।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. Vijay Kumar Sappatti ने आपकी पोस्ट " परिकल्‍पना सम्‍मान : सूची नहीं सूचना है " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

      bahut dino baad bahut acchi rachna padi . lekin isme vyangya kis par hai , isi me ulajh gaya hoon.swami ji

      मतलब इसमें भी आप अपनी मर्जी से नहीं अन्‍यों के उकसावे पर यह लिखने आए थे क्‍योंकि उनकी हड्डियों में तो अब दम नहीं रहा है और उन्‍होंने आपकी कमजोरे हड्डियों का सहारा लेना या आपका इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया है। अब भी समय है चेत जाइए। यह आपके हित में ही रहेगा। आखिर आप में एक महान कवि एवं साहित्‍यकार बनने की संभावनाएं शुरू से ही हैं और आगे भी बढ़ती ही जा रही हैं। इस प्रकार की प्रवृत्तियां तो इसी ओर इंगित करती हैं।

      क्‍या सोचते हैं कि आपकी आंखों और मन में जो गंदगी एक चिकने चेहरे के कारण भर गई है, वह साफ की जा सकती है। बिल्‍कुल नहीं। उसका कारण यह है कि आपने अपनी टिप्‍पणी हटाई जबकि मुझे नहीं लगता कि इसे हटाने की कोई जरूरत थी। इंसान को एक बार सोच समझकर ही लिखना चाहिए, न कि मौसम के अनुकूल बदल जाना चाहिए। कभी टिप्‍पणी लगा दो फिर उसे मिटा दो। मतलब आप अपनी बात पर या कहे पर खुद ही कायम नहीं हैं।
      वैसे जो लालच आपको खींच रहा है, वह जल्‍दी ही एक भ्रम साबित होने वाला है। तब आप स्‍वयं को अकेला ही पाओगे। मुझे न तो अपनी जय जयकार करवाने की आदत है और न किसी की झूठी जय जयकार करना ही मैं पसंद करता हूं। मैं लालची भी नहीं हूं, जितना है उसी में संतोष करता हूं और अपनी ईमानदारी से कर्म करके ही पाने की इच्‍छा रखता हूं।

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    2. मेरे गुरुदेव [ मेरी व्यंग्य विधा के गुरु आप ही हो , ये आप जानते हो , मैं आपको पण गुरु और स्वंय को आपका चेला ही माना है . और ये भी जानता हूँ कि , मैं आप जैसा व्यंग्य लिखना चाहता हूँ , लेकिन लिखने में काफी समय लग जायेंगा . मेरी पिछली कथा " अटेंशन " आपकी गुरु दक्षिणा ही थी गुरुदेव ]

      मैं जान्भूजकर टिपण्णी हटाई क्योंकि आप उसे ठीक से समझे ही नहीं . मैंने आपके काव्य की तारीफ़ की थी और व्यंग्य का कारण पुछा था . आपने सबकुछ मेरे पर ही डाल दिया .

      अब कुछ नहीं कहूँगा सर, मैं थक गया हूँ , आप से न इवेदन है कि उल्टा सीधा न लिखे , यहाँ सब कभी कभी न आपके मित्र रहे है . मैं तो हमेशा ही आपका चेला रहूँगा . इन सबसे अब मुझे बाहर ही आना है . मुझे बस अपनी कविता में ही रमने दो . इन सब से मुक्ति दे दो महाराज .

      आप सभी की जय हो .
      प्रणाम
      विजय

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  4. विजय भाई, जब व्‍यंग्‍य स्‍वयं पर हो तो इंसान का दिग्‍भ्रमित होना स्‍वाभाविक है। यह किसी और पर नहीं है, उस समूह पर है जो अश्‍लीलता के पैरोकार हैं। उस समूह के एक सक्रिय सदस्‍य आप भी हैं। वैसे मठाधीशी के लिए यह सब करना ही पड़ता है, इसके बिना जब जीव जगत नहीं चलता तो हिंदी ब्‍लॉग जगत कैसे चल या दौड़ सकता है।

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    उत्तर
    1. आपसे इसी उत्तर की आशा थी अविनाश जी ,
      मैं तो मित्रता निभाने आया था .पर देखा तो आप में अब भी गंदगी ही भरी हुई है . वैसे अगर मेरे ५ साल के ब्लॉग लेखन में आज तक तो किसी ने भी अश्लीलता नहीं देखि , आपको कैसे दिख गयी.

      खैर आप को क्या समझान .अच्छे अच्छे मित्र आपको नहीं समझा पाए तो मैं क्या समझाऊंगा . आपको आपकी दुनिया मुबारक हो .

      न मैं पहले किसी समूह का सदस्य हूँ और न ही बनूँगा . आप तो स्वामी है , आपकी जय जयकार हो .

      खुश रहे . स्वस्थ रहे. पप्रसन्न रहे .

      हटाएं
    2. मतलब आप स्‍वीकार रहे हैं कि आप महज खानापूर्ति करने और चुटकी लेने आए थे। लेकिन मुझे ऐसा क्‍यों अहसास हो रहा है कि भेजे गए थे। आपके ब्‍लॉग लेखन में अश्‍लीलता का तो मैंने प्रश्‍न ही नहीं उठाया है लेकिन यह भी अश्‍लीलता ही कही जाएगी कि गलत का समर्थन करो, अत्‍याचार और अनाचार के साथ चिपट कर रहो। अश्‍लीलता सिर्फ यौन प्रतीकों की ही नहीं होती है। मन की गंदगी को भी अश्‍लीलता ही कहा-स्‍वीकारा जाता है। आप लेखन चाहे कितना ही स्‍वच्‍छ कर लें लेकिन मन की उज्‍ज्‍वलता बहुत ही अनिवार्य पहलू है। मैं आपको समझा नहीं रहा, सिर्फ बतला ही रहा हूं। आप मानें, मत मानें। यह आपकी और आपके चाहने वालों की इच्‍छा पर निर्भर है। सब स्‍वयं में स्वतंत्र हैं।

      हटाएं

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